Bhimashankar Jyotirlinga Katha की शुरुआत एक ऐसे दौर से होती है जब धर्म की नींव हिलने लगी थी। राक्षसी शक्तियाँ तेजी से फैल रही थीं, और भक्तों का जीवन संकट में था। देवताओं की शक्ति भी सीमित लगने लगी थी। लेकिन तब कोई नहीं जानता था कि सह्याद्रि के जंगलों में एक ऐसी गाथा आकार ले रही है, जो आगे चलकर काल को भी कंपा देगी।
कर्कटी और कुंभकर्ण
लंका का महायुद्ध समाप्त हो चुका था। रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण जैसे शक्तिशाली राक्षस युद्धभूमि में मारे गए थे। परंतु राक्षसी वंश की जड़ें पूरी तरह नष्ट नहीं हुई थीं। कुंभकर्ण की पत्नी, कर्कटी, अपने पति की मृत्यु से अत्यंत दुखी और क्रोधित हो गई। वह सब कुछ छोड़कर वन की ओर चली गई, जहाँ उसने कठोर तांत्रिक साधनाएँ प्रारंभ कीं।
वहीं, कुछ समय बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम उसने भीम रखा। भीम एक असामान्य बालक था उसका शरीर विशालकाय पर्वत जैसा और उसका स्वर बिजली की गर्जना जैसा था। बचपन से ही उसमें अद्वितीय शक्ति और साहस दिखाई देता था। वह न तो देवताओं से भय खाता था, न ही ऋषियों से।
कर्कटी ने एक दिन उसे बताया कि उसके पिता कुंभकर्ण का वध भगवान राम ने किया था, जो स्वयं शिवभक्त थे। यह सुनकर भीम के हृदय में भगवान शिव के प्रति रोष उत्पन्न हो गया। उसी घृणा ने आगे चलकर उसे एक भीषण विरोधी बना दिया, जो देवताओं और धर्म के विरुद्ध खड़ा हो गया।
भीम की प्रतिज्ञा
प्राचीन काल की एक रहस्यमयी कथा में वर्णन आता है कि असुरों में एक अत्यंत बलशाली योद्धा था भीम, जो अपने जन्म से ही घोर घृणा से भरा हुआ था। वह शिव भक्तों से इतना द्वेष करता था कि उसने एक कठोर प्रतिज्ञा ले ली वह धरती से हर उस व्यक्ति को मिटा देगा जो भगवान शिव की भक्ति करता है। इस संकल्प के पीछे उसका उद्देश्य सिर्फ विनाश नहीं था, बल्कि शिव के नाम को ही समाप्त करना था।
भीम ने वर्षों तक कठिन तप कर असीम बल अर्जित किया, यहाँ तक कि देवता भी उसके आतंक से कांप उठे। उसकी शक्तियों से अंधकार फैलने लगा। उसने यज्ञ मंडपों को तहस-नहस किया, ऋषियों के आश्रमों को जला दिया और गाँवों में भय फैला दिया। कोई भी यदि “ॐ नमः शिवाय” का उच्चारण करता, तो वह भीम की क्रूरता का शिकार बनता।
यहीं से आरंभ होती है Bhimashankar Jyotirlinga Katha की वह घड़ी जहाँ अधर्म पूरे चरम पर पहुँचता है और धर्म की रक्षा के लिए भगवान शिव को स्वयं प्रकट होना पड़ता है। यह कथा हमें यह सिखाती है कि जब अधर्म हदें पार करता है, तो शिव अवतार लेते हैं।
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कामरूपेश्वर की भक्ति – Kamrupeshwar ki Bhakti
भीम के अत्याचारों से पूरा क्षेत्र भयभीत था, लेकिन एक साधारण ब्राह्मण कामरूपेश्वर निडर होकर भगवान शिव की पूजा में लीन था। प्रतिदिन वह रुद्राभिषेक करता और पूरे समर्पण के साथ “ॐ नमः शिवाय” का जाप करता। उसका मन केवल शिव में ही रम गया था, और उसे किसी भी भय या सत्ता की चिंता नहीं थी। उसका विश्वास इतना दृढ़ था कि आस-पास के लोग भी उसकी भक्ति से प्रेरणा लेने लगे।
जब राक्षस भीम को यह ज्ञात हुआ कि कोई ब्राह्मण उसके प्रभाव से डरने की बजाय निर्भय होकर शिव की साधना कर रहा है, तो वह अत्यंत क्रोधित हो उठा। उसने गर्व से कहा, “क्या कोई तुच्छ ब्राह्मण मेरी शक्ति को चुनौती दे सकता है?” क्रोध में जलता हुआ वह स्वयं कामरूपेश्वर के गाँव की ओर बढ़ चला, यह दिखाने कि उसकी सत्ता सर्वोपरि है।
लेकिन उसे ज्ञात नहीं था कि जिस शक्ति को वह चुनौती देने जा रहा है, वह केवल एक ब्राह्मण की नहीं बल्कि शिवभक्ति की अपराजेय शक्ति है।
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टकराव
भीम ने गाँव में पहुँचते ही कामरूपेश्वर को पकड़वाया और शिवलिंग को तोड़ने का आदेश दिया। गाँव वाले काँप उठे, लेकिन कामरूपेश्वर का चेहरा शांत था। उसने कहा, “तू मेरा शरीर नष्ट कर सकता है, लेकिन मेरी भक्ति नहीं। मेरा शिव मेरे भीतर है, तू बाहर से कुछ नहीं कर सकता।”
भीम ने क्रोध में तलवार उठाई और शिवलिंग पर वार करने को बढ़ा।
शिव का प्रकट होना
भीम राक्षस अपनी शक्ति के घमंड में चूर होकर जैसे ही शिवलिंग पर प्रहार करने वाला था, तभी प्रकृति ने एक भयानक रूप ले लिया। आकाश में तेज गर्जना हुई, बिजली चमकी और धरती कांपने लगी। अचानक ही एक दिव्य तेज उत्पन्न हुआ और भगवान शिव रौद्र रूप में प्रकट हो गए। उनकी जटाओं से अग्नि लहराने लगी, नेत्रों में प्रचंड क्रोध था और उनकी वाणी में ऐसा कम्पन था जो समस्त दिशाओं को हिला दे।
यह दृश्य इतना अद्भुत और भयावह था कि चारों ओर सन्नाटा छा गया। शिव ने गूंजती हुई आवाज़ में कहा, “हे अधर्मी! तूने मेरे भक्त पर नहीं, सीधे मुझ पर प्रहार किया है। अब तेरा विनाश निश्चित है।”
यही वह अलौकिक क्षण था, जब Bhimashankar Jyotirlinga की स्थापना का आरंभ माना जाता है। यह घटना न केवल धर्म की रक्षा का प्रतीक बनी, बल्कि यह भी प्रमाणित हुआ कि जब कोई सच्चे मन से भगवान को पुकारता है, तो स्वयं महादेव उसकी रक्षा हेतु प्रकट होते हैं।
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भीषण संग्राम
शिव और भीम के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। एक ओर रौद्र रूप धारी शिव, दूसरी ओर घमंड से भरा हुआ असुर। भीम ने अस्त्र-शस्त्रों से हमला किया, पर शिव के सामने कुछ भी नहीं टिक पाया। हर बार शिव उसे चेतावनी देते, पर भीम पीछे हटने को तैयार नहीं था। आखिरकार शिव ने त्रिशूल उठाया और एक ही वार में भीम का अंत कर दिया।
स्थापना भीमाशंकर की – Bhimashankar Jyotirlinga ki sthapna
पुराणों में वर्णित है कि जब असुर भीम का अंत हुआ, तब भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए। उन्होंने भक्त कामरूपेश्वर से कहा “तेरी गहन श्रद्धा और तप ने मुझे यहाँ आने को विवश कर दिया है। अब मैं इस पवित्र भूमि पर सदा के लिए विराजमान रहूँगा।” इतना कहकर शिव उसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग स्वरूप में प्रकट हो गए।
भगवान शिव की इस दिव्य उपस्थिति से वह स्थान महाशक्ति से भर उठा। कहते हैं, उसी क्षण शिव के शरीर से निकला पसीना धरती पर गिरा और एक जलधारा के रूप में बहने लगा, जो आगे चलकर भीमा नदी बनी। आज भी वह पवित्र नदी बहती है, मानो शिव की ऊर्जा को बहाकर इस क्षेत्र को पावन बना रही हो।
भीमाशंकर धाम न केवल एक तीर्थ स्थान है, बल्कि यह उन अद्वितीय स्थलों में से एक है जहाँ प्रकृति और आध्यात्म एक साथ उपस्थित हैं। यहाँ हर कण में शिव की उपस्थिति का आभास होता है। यह कथा भक्तों के मन में विश्वास और आस्था की ज्योति जलाए रखती है।
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Bhimashankar Jyotirlinga Katha का संदेश
यह कथा हमें सिखाती है कि जब अधर्म बढ़े, जब अहंकार अंधा हो जाए, और जब सच्ची भक्ति संकट में हो, तब शिव स्वयं प्रकट होते हैं। वे केवल विनाशक नहीं, वे रक्षक भी हैं। कामरूपेश्वर जैसे साधक चाहे अकेले हों, पर उनकी भक्ति के सामने राक्षसों का साम्राज्य भी छोटा पड़ जाता है।
Bhimashankar Jyotirlinga Katha यह भी बताती है कि शिव केवल मंदिर में नहीं, वे हर उस हृदय में हैं जहाँ श्रद्धा है, जहाँ समर्पण है।
निष्कर्ष
हे भीमाशंकर, आपने यह सिद्ध कर दिया कि सच्ची भक्ति कभी हारती नहीं। आपने दिखाया कि जब संकट घना हो जाए, तब आशा स्वयं त्रिशूल लेकर खड़ी हो जाती है। जैसे आपने कामरूपेश्वर की रक्षा की, वैसे ही आज हम जैसे सामान्य भक्तों की भी रक्षा कीजिए। हमारे भीतर के भीम अहंकार, क्रोध, द्वेष का अंत कीजिए। हमें वो दृष्टि दीजिए जहाँ हम हर परिस्थिति में “ॐ नमः शिवाय” के सहारे खड़े रह सकें।
आपके इस धाम में सिर्फ पत्थर नहीं, वो शक्ति है जो युगों तक भक्तों को बचाती रही है। हमें भी उसी ऊर्जा से जोड़ लीजिए। हमें भी आपके चरणों में वो शांति दीजिए जो काल के भय से भी ऊपर हो।
हर हर महादेव। जय भीमाशंकर।
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