- अन्नपूर्णा की चिंता और शिव का संकल्प – Shiv ka Sankalp
- दिव्य तेज से जन्मे विश्वेश्वर
- काल भैरव की नियुक्ति – Kal Bherav ki Niyukti
- देवताओं का आग्रह और शिव का आशीर्वाद
- वृद्ध ब्राह्मण की कथा –Vruddh Brahman ki Katha
- मणिकर्णिका घाट का रहस्य – Manikarnika Ghat Ka Rahasya
- काशी क्यों नहीं डूबती – Kashi kyu nahi dubti
- भक्तिपूर्ण समर्पण ( Conclusion )
Kashi Vishwanath Jyotirlinga Katha कोई साधारण कथा नहीं, यह शिव की उस लीला की गाथा है जहाँ मृत्यु का भय नहीं, मोक्ष की प्राप्ति होती है। काशी, वह नगर जिसे स्वयं भगवान शिव ने अपना घर चुना। यह धरती कोई सामान्य जगह नहीं, यह वह भूमि है जहाँ मृत्यु भी अपना अहंकार त्याग देती है। जहाँ जीवन समाप्त नहीं होता, बल्कि नया प्रारंभ होता है।
कहते हैं काशी में मृत्यु एक वरदान है, क्योंकि यहाँ मरण का अर्थ है मोक्ष। लेकिन ऐसा क्यों? यही जानने के लिए हमें चलना होगा हजारों वर्षों पीछे… जहाँ से शुरू होती है Kashi Vishwanath Jyotirlinga की वह कथा जो आज भी हर आत्मा को मुक्त करती है।
अन्नपूर्णा की चिंता और शिव का संकल्प – Shiv ka Sankalp
एक समय की बात है, जब जगत की सृष्टि हो चुकी थी, तब देवी अन्नपूर्णा ने ब्रह्माजी से एक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा “इस संसार में जीवन तो है, पर इसे पोषित कैसे किया जाएगा? यदि अन्न न हो, तो जीवधारी कैसे जिएँगे?” ब्रह्मा मौन हो गए, उत्तर न दे सके। तब उन्होंने यही प्रश्न भगवान विष्णु से किया, किंतु वहाँ से भी कोई समाधान नहीं मिला।
अंत में सभी देवता कैलाश पहुँचे और भगवान शिव से मार्गदर्शन माँगा। शिव मुस्कराए और बोले “जब तक देवी अन्नपूर्णा स्वयं पृथ्वी पर नहीं उतरेंगी, तब तक अन्न का महत्त्व नहीं समझा जाएगा।” देवी ने फिर प्रश्न किया, “यदि मैं धरती पर आऊँ तो मेरा स्थान कहाँ होगा?” तब भगवान शिव ने उत्तर दिया “काशी वह स्थान होगा जहाँ मैं सदा वास करूँगा, और वहीं तुम्हारा निवास भी होगा।”
तभी से काशी को शिव की नगरी और अन्नपूर्णा का धाम माना जाता है, जहाँ किसी को भूख, भय या भटकाव नहीं सताता। यह कथा न केवल अन्न के महत्व को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि शिव और शक्ति का यह अद्भुत संगम लोक कल्याण का आधार है।
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दिव्य तेज से जन्मे विश्वेश्वर
जब सृष्टि में अधर्म अपने चरम पर था और चारों ओर अंधकार फैलने लगा था, तब एक अलौकिक प्रकाश की किरण ब्रह्मांड में प्रकट हुई। यह ज्योति कोई सामान्य प्रकाश नहीं थी, बल्कि स्वयं भगवान शिव का दिव्य तेज था। यह तेज धीरे-धीरे काशी में स्थिर हुआ और अंततः एक शिवलिंग के रूप में प्रकट हुआ। यही शिवलिंग आगे चलकर विश्वेश्वर नाम से पूजित हुआ, जिसका अर्थ है “संपूर्ण सृष्टि का स्वामी”।
काशी में स्थापित यह शिवलिंग किसी मानव द्वारा स्थापित नहीं किया गया था। यह स्वयंभू था स्वयं भगवान शिव द्वारा प्रकट एवं प्रतिष्ठित। इसमें किसी निर्माण कला की योजना नहीं, बल्कि अखंड श्रद्धा और दिव्यता की झलक थी। यह केवल एक पत्थर नहीं, बल्कि ऊर्जा और आस्था का साक्षात प्रतीक था।
इसी अद्भुत प्राकट्य के कारण यह स्थान कालांतर में काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यह शिवधाम न केवल धरती पर ईश्वर की उपस्थिति का प्रमाण है, बल्कि यह दर्शाता है कि जब भी अधर्म बढ़ेगा, तब ईश्वर स्वयं किसी न किसी रूप में प्रकट होकर धर्म की रक्षा करेंगे।
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काल भैरव की नियुक्ति – Kal Bherav ki Niyukti
जब भगवान शिव ने काशी को अपनी सबसे प्रिय नगरी घोषित किया, तो उन्होंने वहां की आत्मिक शांति और धर्म की रक्षा के लिए एक शक्तिशाली प्रहरी की आवश्यकता अनुभव की। तभी उन्होंने अपने रौद्र और रक्षक स्वरूप काल भैरव को नियुक्त किया। यह आदेश दिया गया कि “जो भी प्राणी काशी में अपना अंतिम श्वास ले, तुम उसके समस्त पाप हर लेना, ताकि उसकी मृत्यु मोक्ष का द्वार बन जाए।”
इस दिव्य आदेश के बाद काल भैरव न केवल काशी के रक्षक बने, बल्कि उन्होंने मृत्यु को भय का नहीं, बल्कि मुक्ति का माध्यम बना दिया। ऐसा विश्वास है कि काशी में मृत्यु एक अंत नहीं, बल्कि आत्मा की पूर्णता है जहाँ स्वयं महादेव और काल भैरव साथ मिलकर जीव को मोक्ष प्रदान करते हैं।
इसी कारण काशी को “मुक्ति नगरी” और काल भैरव को “काशी के कोतवाल” कहा जाता है। यहाँ मृत्यु नहीं डराती, बल्कि आत्मा को शिव में विलीन होने का सौभाग्य देती है। काल भैरव की यह नियुक्ति एक आध्यात्मिक व्यवस्था का प्रतीक है जहाँ धर्म, रक्षा और मुक्ति एक साथ चलते हैं।
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देवताओं का आग्रह और शिव का आशीर्वाद
देवताओं को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि शिव ने स्थायित्व को चुना। जो संहार के देवता थे, वो अब एक शहर में बस गए? शिव ने उत्तर दिया – “काशी मेरी आत्मा है। जो यहाँ मरेगा, वह मेरे द्वारा मुक्त होगा।”
यह वचन मात्र नहीं, यह ब्रह्म वाक्य था। यमराज स्वयं शिव के इस निर्णय के आगे नतमस्तक हो गए। उन्होंने कहा “हे नाथ, जो भी जीव काशी में प्राण त्यागेगा, मैं उसे छुने भी नहीं जाऊँगा। उसका मार्ग अब आपका है।”
वृद्ध ब्राह्मण की कथा –Vruddh Brahman ki Katha
एक बार एक वृद्ध ब्राह्मण, जो आजीवन पुण्य और तप में रत रहा, अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुँचा। उसने संकल्प लिया कि वह काशी में अंतिम श्वास लेगा। लेकिन रास्ते में ही वह बीमार हो गया। जब उसने शिव को पुकारा, तो एक साधारण व्यक्ति के रूप में शिव उसके सामने प्रकट हुए।
शिव ने स्वयं उसे उठाया, उसकी देखभाल की, और जब उसकी अंतिम घड़ी आई तो उसके कान में “राम” नाम की गूंज दी। ब्राह्मण की आत्मा उसी क्षण मुक्त हो गई।
यह कोई चमत्कार नहीं था, यह Kashi Vishwanath Jyotirlinga Katha का जीवंत अध्याय था।
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मणिकर्णिका घाट का रहस्य – Manikarnika Ghat Ka Rahasya
काशी का मणिकर्णिका घाट केवल अंतिम संस्कार का स्थान नहीं, यह वह भूमि है जहाँ मृत्यु भी शांत हो जाती है। मान्यता है कि जो यहाँ शरीर त्याग करता है, उसके कान में स्वयं शिव “तारक मंत्र” का उच्चारण करते हैं, जिससे आत्मा का बंधन टूट जाता है।
यह मंत्र कोई शाब्दिक ज्ञान नहीं, यह परम रहस्य है। और यही रहस्य है, काशी की शांति, और विश्वनाथ की अपार करुणा।
काशी क्यों नहीं डूबती – Kashi kyu nahi dubti
ऐसी मान्यता है कि जब संपूर्ण पृथ्वी प्रलय में डूब जाती है, तब भी काशी नहीं डूबती। शिव ने इसे त्रिशूल पर टिकाया है। काशी केवल नगर नहीं, यह चेतना है। यहाँ केवल देह नहीं जलते, अहंकार भी नष्ट होता है।
Kashi Vishwanath Jyotirlinga Katha इसी बात का प्रमाण है कि जहाँ शिव हैं, वहाँ न तो काल की सत्ता चलती है, न यम का भय रहता है।
भक्तिपूर्ण समर्पण ( Conclusion )
हे विश्वनाथ, हे काशी के स्वामी, आपने हमें जीवन के सबसे गहरे सत्य को सरल कर दिय-कि मृत्यु अंत नहीं, शिव का आमंत्रण है। जैसे आपने एक वृद्ध को गोद में उठाया, वैसे ही हमें भी अपने चरणों में स्थान दीजिए। जब हम इस सांसारिक मोह से थक जाएँ, तो आपकी नगरी की धूल भी हमें मोक्ष दे दे।
आपके मंदिर की घंटियों में वह शांति है जो जीवन भर की साधना से भी नहीं मिलती। हे बाबा विश्वनाथ, जब हमारे जीवन का दीपक बुझने लगे, तो आप उसमें अपनी कृपा की बाती डाल देना – ताकि हमारी आत्मा भी आपकी ज्योति में विलीन हो जाए।
हर हर महादेव। जय काशी विश्वनाथ।