Shiv Panchakshar Stotra Ki Origin Katha | शिव पंचाक्षर स्तोत्र कैसे प्रकट हुआ?

सनातन धर्म की परंपराओं में, प्रत्येक मंत्र और स्तोत्र के पीछे कोई न कोई गूढ़ रहस्य, पौराणिक कथा या दिव्य प्रेरणा छिपी होती है। उन्हीं में से एक है – “ॐ नमः शिवाय” मंत्र से युक्त Shiv Panchakshar Stotra, जो भगवान शिव की आराधना का अत्यंत शक्तिशाली माध्यम माना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई? शिव पंचाक्षर स्तोत्र के पीछे कौन सी रहस्यमयी कथा छिपी है?

आज हम जानेंगे इसी स्तोत्र की पौराणिक उत्पत्ति, जो शिवपुराण, वायु पुराण और अन्य ग्रंथों में वर्णित है। यह कथा केवल इतिहास नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना का जीवंत स्रोत है।

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शिव पंचाक्षर मंत्र का तात्त्विक आधार

“ॐ नमः शिवाय” Shiv Panchakshar Stotra का मूल मंत्र है, जिसमें पाँच अक्षर ‘न’, ‘म’, ‘शि’, ‘वा’, और ‘य’ सम्मिलित हैं। इन पांचों अक्षरों को पंचमहाभूत पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश का प्रतीक माना जाता है। यह मंत्र केवल उच्चारण मात्र नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय तत्वों से जुड़ा एक आध्यात्मिक अनुभव है। इस मंत्र की उत्पत्ति किसी साधारण धार्मिक प्रक्रिया का परिणाम नहीं है, बल्कि इसके मूल में एक रहस्यमयी और दिव्य घटना छुपी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि सृष्टि की प्रारंभिक अवस्था में जब चेतना और शक्ति का पहला संयोग हुआ, तभी इस पंचाक्षर मंत्र का प्राकट्य हुआ।

‘ॐ नमः शिवाय’ न केवल आत्मा को शांति प्रदान करता है, बल्कि साधक के भीतर चेतना की जागृति करता है। यह शिव तत्व की अभिव्यक्ति है, जो हमें आंतरिक शुद्धि, संतुलन और ब्रह्मांड से एकात्मता की ओर ले जाती है। इस मंत्र का जाप करते समय साधक पंचमहाभूतों के साथ एक दिव्य संयोग स्थापित करता है, जिससे उसकी साधना साकार रूप लेती है और आत्मिक विकास की दिशा में गहराई से अग्रसर होती है।

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पौराणिक कथा (Shiv Panchakshar Stotra Ki Pauranik Katha )

शिव की आरंभहीन सत्ता

शिव न आदि हैं, न अंत। वे सृष्टि से परे हैं। जब न ब्रह्मा थे, न विष्णु, न देवता, न पृथ्वी केवल एक ही सत्ता थी वह थी शिव। उन्होंने न कोई रूप धारण किया, न कोई आवरण। वे पूर्ण, निराकार और आत्मस्वरूप थे। वह समय सृष्टि के प्रारंभ से पहले का था। ‘नाद’ की पहली कंपन हुई, और उसी से उत्पन्न हुआ एक दिव्य शब्द “ॐ”। यह शिवस्वरूप था। शिव की इच्छा से फिर धीरे-धीरे प्रकट हुए पाँच अक्षर “, , शि, वा, ” जो स्वयं शिव के पंचमुखों से निकले।

इन पाँचों अक्षरों से बना “ॐ नमः शिवाय”

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ब्रह्मा और विष्णु का अहंकार – रहस्य की पहली कड़ी

एक बार ब्रह्मा और विष्णु में यह विवाद हो गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्मा ने कहा, “मैं सृष्टिकर्ता हूँ, इसलिए सबसे ऊपर हूँ।” विष्णु बोले, “मैं पालन करता हूँ, बिना मेरे सब नष्ट हो जाए।” इसी विवाद के बीच अचानक एक अग्निस्तंभ प्रकट हुआ एक ऐसा तेजस्वी स्तंभ जो आकाश और पाताल से भी परे था। ब्रह्मा और विष्णु ने तय किया,

  • ब्रह्मा ऊपर की दिशा में जाएंगे
  • विष्णु नीचे की ओर

दोनों उसकी अंतिम सीमा खोजने निकल पड़े। वर्षों बीत गए, लेकिन न ब्रह्मा को सिरा मिला, न विष्णु को अंत। विष्णु ने हार मान ली और लौट आए। पर ब्रह्मा ने झूठ बोल दिया “मैंने शीर्ष देख लिया।” तभी वह अग्निस्तंभ फट गया और उसमें से प्रकट हुए भगवान शिव। उन्होंने कहा – “तुम दोनों मेरे ही अंश हो। तुमने अहंकारवश मेरा स्तंभ समझा ही नहीं। मैं ही आदि और अनादि हूँ।” यह वही क्षण था जब ब्रह्मा और विष्णु ने प्रथम बार शिव को स्वीकारा, और शिव को नमस्कार किया।

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पंचमुख शिव की प्रकट कथा

इस प्रसंग के बाद भगवान शिव प्रकट हुए पंचमुखों में

  • सद्योजात (पश्चिम) पृथ्वी तत्व
  • वामदेव (उत्तर) जल तत्व
  • अघोरा (दक्षिण) अग्नि तत्व
  • तत्पुरुष (पूर्व) वायु तत्व
  • ईशान (ऊपर) आकाश तत्व

इन्हीं मुखों से निकले पाँच अक्षर:

  • – ईशान से
  • – तत्पुरुष से
  • शि – अघोरा से
  • वा – वामदेव से
  • – सद्योजात से

इस प्रकार “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का आविर्भाव हुआ। इन पंचाक्षरों के उच्चारण से पंचतत्वों का संतुलन, मन की शुद्धि और आत्मा की जागृति होती है।

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ऋषि-पुंगवों को मंत्र का उपदेश

जब शिव ने यह पंचाक्षर मंत्र प्रकट किया, तब उन्होंने इसे ऋषि वशिष्ठ, अगस्त्य, अत्रि, भृगु आदि को प्रदान किया। वेदों की ऋचाओं में यह मंत्र अनेक स्थानों पर प्रतिध्वनित होता है। यजुर्वेद में यह मंत्र विशेष रूप से मिलता है “नमः शिवाय च शिवतराय च” इस मंत्र को गोपनीय और शक्तिशाली माना गया। शिव स्वयं कहते हैं,

“जो इस पंचाक्षर का श्रद्धा से जप करता है, वह मेरे ही स्वरूप को प्राप्त करता है।”

शिव पंचाक्षर स्तोत्र की रचना का क्षण

ऋषि वाजसनेयी, जिन्होंने यजुर्वेद के अनेक रहस्य प्रकट किए, एक बार कैलाश पर शिव के ध्यान में लीन थे। उन्हीं की साधना से प्रभावित होकर, भगवान शिव ने उन्हें Shiv Panchakshar Stotra की दिव्य अनुभूति दी।

कहते हैं कि उन्होंने ध्यान में पाँच दिव्य दृश्य देखे हर दृश्य में एक-एक अक्षर के साथ शिव का रहस्य प्रकट हुआ। वहीं से यह स्तोत्र उनके अंत:करण से फूट पड़ा और शिव को समर्पित हो गया।

रावण की आराधना और स्तोत्र की महिमा

लंका के राक्षसराज रावण भी शिवभक्त थे। उन्होंने कठोर तपस्या की थी। कहते हैं कि जब उन्होंने अपनी भुजाओं से कैलाश पर्वत उठाने का प्रयास किया, तब शिव ने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश को दबा दिया। रावण वहीं दब गया। उसी अवस्था में उसने ‘शिव तांडव स्तोत्र’ और फिर ‘Shiv Panchakshar Stotra’ की रचना की।

उसने “ॐ नमः शिवाय” का जप करते हुए शिव से क्षमा मांगी। शिव ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया और लंका की महिमा स्थापित की। इससे यह सिद्ध होता है कि पंचाक्षर मंत्र और स्तोत्र, शिव को शीघ्र प्रसन्न करने का श्रेष्ठ उपाय हैं।

आज के युग में भी प्रासंगिक

भगवान शिव स्वयं कहते हैं “मैं मंत्रस्वरूप हूँ। जो मेरा पंचाक्षर मंत्र श्रद्धा से जपेगा, वह मुझे साक्षात पाएगा।” यह स्तोत्र केवल वैदिक ज्ञान नहीं, बल्कि एक जीवन मंत्र है। आज जब संसार असंतुलन, दुख और भ्रम से घिरा है, तब “ॐ नमः शिवाय” की शक्ति आत्मा को स्थिर कर सकती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

Shiv Panchakshar Stotra की उत्पत्ति कोई कल्पना नहीं, बल्कि शाश्वत सत्य है। यह मंत्र सृष्टि के आरंभ से पूर्व प्रकट हुआ था और इसका उद्गम स्वयं भगवान शिव से हुआ। इसमें पंचमहाभूत, पंचमुख, पंचदेव, पंचतत्त्व और पंचचेतना का समावेश है। शिवपुराण, वायु पुराण और वेदों की वाणी इसका प्रमाण देती हैं। जो साधक इसके पीछे की इस पौराणिक कथा को हृदय से समझता है, वही उसके जप में लीन होकर शिवत्व को प्राप्त करता है।


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