Devi Durga Aarti ka Mahatva (श्री दुर्गा आरती)
माँ दुर्गा सनातन परंपरा में शक्ति, करुणा और संरक्षण का आदर्श स्वरूप मानी जाती हैं। मार्कण्डेय पुराण के “देवी महात्म्य” (दुर्गा सप्तशती) में माँ के रूप, स्वभाव और उनके दिव्य कृत्यों का विस्तार से वर्णन मिलता है। आस्था के अनुसार माँ दुर्गा भक्तों के कष्टों का अंत करती हैं, विघ्न-बाधाओं से रक्षा करती हैं और जीवन में साहस व सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं।
आरती का उद्देश्य केवल स्तुति नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म को एकाग्र कर दिव्य चेतना से जुड़ना है। नियमित आरती और नामस्मरण से,
- नकारात्मक विचार कम होते हैं और मन में स्थिरता आती है।
- घर-परिवार में सामंजस्य बढ़ता है और आध्यात्मिक अनुशासन विकसित होता है।
- आत्मबल, धैर्य और नैतिक साहस (Dharma-आधारित निर्णय क्षमता) मजबूत होती है।
परंपरा में यह भी माना जाता है कि दुर्गा कवच (देवी कवच), अर्गला और कीलक स्तोत्र के साथ आरती का पाठ सुरक्षा-भाव और निर्भीकता को बल देता है। “नवदुर्गा यंत्र” को आराधना स्थल पर स्थापित कर आरती करने की परंपरा भी है, जिसे आस्था के अनुसार शत्रु-बाधा और अनिष्ट से रक्षा हेतु शुभ माना जाता है। कृपया ध्यान दें ये आध्यात्मिक मान्यताएँ हैं; चिकित्सकीय समस्या हो तो विशेषज्ञ सलाह अवश्य लें।
Durga Aarti (श्री दुर्गा आरती)
निम्न पाठ व्यापक रूप से प्रचलित है; क्षेत्र और परंपरा के अनुसार पाठ-भेद संभव है। कृपया अपने कुल/गुरु परंपरा का सम्मान करें।
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी॥
ॐ जय अम्बे गौरी।
मांग सिंदूर विराजत तिलक मृगमद को।
उज्ज्वल से दोऊ नैना चन्द्रवदन नीको॥
ॐ जय अम्बे गौरी।
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजे।
रक्त पुष्प गल-माला कंठन पर साजे॥
ॐ जय अम्बे गौरी।
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्पर धारी।
सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुःख हारी॥
ॐ जय अम्बे गौरी।
कानन कुंडल शोभित नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत सम ज्योति॥
ॐ जय अम्बे गौरी।
शुंभ निशुंभ विदारे महिषासुर धाती।
धूम्रलोचन संहारे नित तुम मदमाती॥
ॐ जय अम्बे गौरी।
चण्ड मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे सुर भय हीन करे॥
ॐ जय अम्बे गौरी।
ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमलारानी।
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी॥
ॐ जय अम्बे गौरी।
चौसठ योगिनी गावत नृत्य करत भैरव।
बाजत ताल मृदंगा अरु डमरू घनघोर॥
ॐ जय अम्बे गौरी।
तुम ही जग की माता तुम ही हो भारती।
भक्तों की दुःखहर्ता सुख अंतिम कर्ता॥
ॐ जय अम्बे गौरी।
भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी।
मनवांच्छित फल पावे सेवत नर नारी॥
ॐ जय अम्बे गौरी।
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती।
श्रीफल मेवा सहित रजत कोटि रत्न ज्योति॥
ॐ जय अम्बे गौरी।
या अम्बे जी की आरती जो कोई नर गाये।
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपत्ति पाये॥
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी॥
ॐ जय अम्बे गौरी।
॥ माँ दुर्गा आरती संपूर्णं ॥
Durga Aarti Benefits (दुर्गा आरती के लाभ)
- आध्यात्मिक एकाग्रता: आरती के सुर-ताल और ज्योति से मन केंद्रित होता है, जिससे चिंतन-शक्ति और स्थिरता बढ़ती है।
- सकारात्मक ऊर्जा: दीप-धूप की सुगंध और स्तुति वातावरण को पवित्र करती है; घर में शांति और सद्भाव बढ़ते हैं।
- अनुशासन और दिनचर्या: नित्य प्रातः/संध्या आरती व्यक्ति में समयबद्धता, श्रद्धा और सदाचार का विकास करती है।
- भावनात्मक संबल: संकट काल में आरती मन को आश्वस्त करती है; भय, निराशा और नकारात्मकता पर अंकुश लगता है।
- सामूहिक सौहार्द: परिवार/मंदिर में सामूहिक आरती से सामाजिक जुड़ाव और सांस्कृतिक पहचान मजबूत होती है।
- परंपरागत सुरक्षा-भाव: आस्था के अनुसार दुर्गा कवच और नवदुर्गा यंत्र के साथ आरती से अनिष्ट-बाधा से रक्षा का भाव दृढ़ होता है।
Kaise Kare Durga Aarti (Step-by-step Vidhi)
- स्थान शुद्धि: आराधना स्थल स्वच्छ करें; माँ दुर्गा की मूर्ति/चित्र पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में रखें।
- संकल्प: दीप जलाकर शांत होकर मन में संकल्प लें आरती माँ की कृपा और कल्याण हेतु।
- पूजन सामग्री: फूल (लाल/गेंदा), रोली, अक्षत, चंदन, धूप-दीप, नैवेद्य (फल/मिष्टान्न), कलश जल।
- ध्यान और मंत्र: “या देवी सर्वभूतेषु…” श्लोक या देवी कवच/दुर्गा सप्तशती से संक्षिप्त पाठ।
- आरती: घंटी/मृदंग के साथ दीपक (घी/कपूर) से आरती करें घड़ी की दिशा में 7, 5, 3, 1 बार क्रमशः चरण, नाभि, मुख, समष्टि।
- नैवेद्य व क्षमा प्रार्थना: भोग लगाकर क्षमा-याचना करें; प्रसाद वितरण करें।
- अंत में शांति पाठ: लोक-कल्याण और परिवार की मंगलकामना करें।
Shubh Samay & Niyam (आरती का समय)
- सर्वश्रेष्ठ: प्रातःकाल सूर्योदय के आसपास और संध्याकाल सूर्यास्त के आसपास।
- विशेष अवसर: नवरात्रि (चैत्र/शारदीय), दुर्गाष्टमी, नवमी, शुक्रवार और अमावस्या/पूर्णिमा पर आरती विशेष फलदायी मानी जाती है।
- ध्यान दें: तिथि/मुहूर्त हर वर्ष बदलते हैं स्थानीय पंचांग/पंडित से परामर्श लें।
Puja Samagri List (पूजा सामग्री)
- घी/कपूर का दीपक, माचिस/अग्नि
- धूप/अगरबत्ती, चंदन/कुमकुम/अक्षत
- फूल (विशेषतः लाल), हार/पुष्पांजलि
- नैवेद्य: फल, मिष्ठान्न, पंचामृत/पानी
- आरती थाल, घंटी, स्वच्छ वस्त्र/दुपट्टा
- दुर्गा प्रतिमा/चित्र, लाल आसन/वस्त्र
- यदि परंपरा हो: दुर्गा कवच/सप्तशती ग्रंथ, नवदुर्गा यंत्र
FAQs
“जय अम्बे गौरी” आरती के कई प्रचलित संस्करण हैं। ऊपर दिया पाठ लोक-प्रचलित रूप पर आधारित है। यदि आपके कुल या क्षेत्र में कुछ पद अलग हों तो वैसा ही पाठ सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
Disclaimer
यह लेख आस्था और परंपरा पर आधारित सामान्य जानकारी प्रस्तुत करता है। वर्णित मान्यताएँ/संदर्भ क्षेत्र और ग्रंथों के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। BhaktiDhams.com किसी दावे की सटीकता/पूर्णता की गारंटी नहीं देता। किसी भी अनुष्ठान/निर्णय से पहले योग्य विशेषज्ञ/पंडित से परामर्श लें।





