Grishneshwar Jyotirlinga Katha: 5 Mystery जब माँ की भक्ति ने मृत्यु को पलट दिया

Grishneshwar Jyotirlinga Katha ये दर्शाय कथा है जो भक्ति की पावनता, मैतृत्वता और चुपी चैतन्यता को औरंगाबाद की धरती पर सजीव करती है।

वो समय था जब महाराष्ट्र की धरती साधना से स्पंदित होती थी। वहाँ एक गांव था, शांत, सामान्य, लेकिन उस गांव की माटी में कुछ खास था – शायद किसी पुराने पुण्य का प्रभाव। उसी गांव में रहती थी एक स्त्री – नाम था घृष्मा। वह ना किसी राजवंश से थी, ना किसी ज्ञानी कुल से, पर उसकी आत्मा में जो था, वो पूरे युग को बदलने की ताकत रखता था, भक्ति।

घृष्मा एक सामान्य गृहिणी थी, लेकिन उसकी दिनचर्या असामान्य थी। घर के सारे काम निपटाकर वो हर सुबह मिट्टी से १०० पार्थिव शिवलिंग बनाती, उनका विधिवत रुद्राभिषेक करती, और दिन के अंत में उन्हें पास की नदी में प्रवाहित कर देती। यह केवल कर्मकांड नहीं था, यह उसका प्रेम था – शिव से मौन संवाद।

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ईर्ष्या का बीज और सहनशीलता की जड़ें

घृष्मा एक शांत, धार्मिक और भक्तिपूर्ण जीवन जीती थी। उसका संपूर्ण जीवन शिव की भक्ति में लीन था। उसका पति भी उसे पूरा सम्मान देता था और धार्मिक प्रवृत्ति का था। लेकिन परिवार में एक ऐसी स्त्री थी जिसे यह सब सहन नहीं हो रहा था उसकी सौत, जो भीतर ही भीतर घृष्मा की प्रतिष्ठा से जलती थी।

सौत को यह स्वीकार नहीं था कि एक सरल और विनम्र स्त्री समाज में केवल शिवभक्ति के कारण सम्मान पा रही है। उसके मन में ईर्ष्या का बीज गहराता गया। कभी वह घृष्मा को व्यंग्यपूर्ण शब्दों से आहत करती, तो कभी उसके खिलाफ झूठ फैलाने की कोशिश करती। कई बार वह घृष्मा को नीचा दिखाने के लिए समाज में अफवाहें फैलाती।

लेकिन घृष्मा ने कभी पलटकर कुछ नहीं कहा। उसने सहनशीलता की जड़ें भीतर तक मजबूत कर ली थीं। हर अपमान पर वह मुस्कुराकर कहती – “जो कुछ भी हो रहा है, भोलेनाथ देख रहे हैं।”

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जब आस्था की परीक्षा आई

समय धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया। घृष्मा एक पुत्र की माता बनी और वही उसका जीवन का केंद्र बन गया। माँ बनने के बाद भी उसका तप और नियम नहीं बदला – वह प्रतिदिन सौ मिट्टी के शिवलिंग बनाकर श्रद्धा से उनकी पूजा करती और उन्हें पास की नदी में विसर्जित करती।

लेकिन उसकी सौत इस भक्ति और स्नेह से जलने लगी थी। उसकी ईर्ष्या धीरे-धीरे द्वेष में बदलती गई। एक दिन, जब घृष्मा अपने नित्य पूजा-पाठ में लीन थी और उसका नन्हा बालक आंगन में खेल रहा था, तभी सौत ने एक क्रूर योजना बनाई। उसने मासूम बालक को मार डाला और उसका शव उसी नदी में बहा दिया जहाँ घृष्मा हर दिन शिवलिंगों का विसर्जन करती थी।

जब घृष्मा को यह दर्दनाक घटना पता चली, तो उसका मन टूट गया। लेकिन उसने किसी को दोष नहीं दिया। वह बस भगवान शिव की शरण में गई। उसकी निष्ठा और आस्था को देखकर स्वयं शिव प्रकट हुए और उसके पुत्र को जीवनदान दिया। यह घटना वही स्थल है जिसे आज घृष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है – एक माँ की आस्था का अमर प्रमाण।

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माँ की आँखें रोईं, पर मन नहीं टूटा

पूजा संपन्न करने के बाद जब घृष्मा नदी किनारे पहुँची, तो उसकी निगाह अचानक एक बहते हुए शव पर पड़ी। वह दृश्य ऐसा था जिसने उसकी सांसें थाम दीं वह शव उसके अपने बेटे का था। क्षणभर को सब कुछ थम-सा गया। जिस नदी में वह प्रतिदिन श्रद्धा से शिवलिंग प्रवाहित करती थी, आज वही नदी उसके जीवन के सबसे बड़े दुख का साक्षी बन गई।

उसके आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे, लेकिन उसके होंठों पर कोई शिकायत नहीं थी। उसने न तो किसी को दोषी ठहराया, न ही विधि के विधान पर प्रश्न उठाया। उसने अपने भीतर के धैर्य को पकड़े रखा। एक गहरी नज़र उस शांत नदी पर डाली और बोली, “हे प्रभु, यदि यही आपकी मर्जी है, तो मैं उसे भी स्वीकार करती हूँ। मेरा बेटा आपका अंश था, आपने उसे बुला लिया। मैं आभार व्यक्त करती हूँ कि वह आपके पास गया।”

उस दिन माँ ने अपने आँसू बहाए, लेकिन आस्था को टूटने नहीं दिया।

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पुनः पूजा, पुनः आस्था

उस दिन भी घृष्मा ने १०० शिवलिंग बनाए। हाथ काँपते थे, आँखें नम थीं, लेकिन मन अडिग था। जब उसने अंतिम शिवलिंग का अभिषेक किया, तो उसकी आँखों से गिरा एक आँसू जल के साथ शिवलिंग पर पड़ा। शिव मौन थे, पर उनकी करुणा जाग उठी।

शिव का प्रकट होना – Grishneshwar का जन्म

अचानक आकाश में एक दिव्य प्रकाश चमका और जल पूरी तरह शांत हो गया। उसी क्षण एक अलौकिक पुरुष प्रकट हुए स्वयं भगवान शिव। उनके नेत्रों से तेज झलक रहा था, वाणी करुणा से भरी थी, और उन्होंने गूंजती हुई वाणी में कहा, “घृष्मा, तेरी निःस्वार्थ भक्ति और तपस्या ने मुझे अत्यंत प्रसन्न किया है। तूने अपने पुत्र को भी मेरे चरणों में समर्पित कर दिया। ऐसा त्याग, सहनशीलता और प्रेम अत्यंत दुर्लभ है यह मेरे अंतःकरण को छू गया।”

इसके पश्चात महादेव ने एक वरदान देते हुए कहा,

“मैं तुझे तेरा पुत्र पुनः लौटाता हूँ। साथ ही, इस पुण्य भूमि को मैं अपना निवास बनाऊँगा। यहाँ मैं स्वयं शिवलिंग रूप में प्रतिष्ठित होऊँगा। इस स्थान का नाम ‘घृष्णेश्वर’ होगा जो तेरे नाम को सदा अमर बना देगा।” तुरंत ही उसका मृत पुत्र जीवित हो उठा और ‘माँ’ पुकारते हुए उसकी गोद में लौट आया। गाँव के लोग स्तब्ध रह गए यह एक माँ की सच्ची भक्ति थी जिसने मृत्यु को भी वश में कर लिया।

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ज्योतिर्लिंग की प्रकट कथा

एक समय की बात है, जब महान भक्त घृष्मा ने कठोर तपस्या और निःस्वार्थ भावना से शिव की उपासना की। उन्होंने अंततः जल में अपना पार्थिव शिवलिंग विसर्जित किया। उसी क्षण उस स्थान की वायु शांत हो गई, जल स्थिर हो गया और वातावरण में एक दिव्य प्रकाश फैल गया। यह दृश्य इतना विलक्षण था कि प्रकृति भी नतमस्तक हो गई। तभी भगवान शिव वहाँ साक्षात प्रकट हुए और अपनी करुणा से एक स्वयंभू शिवलिंग की स्थापना की।

शिव ने इस स्थान को विशेष बताते हुए कहा, “जो कोई भी यहाँ सच्चे मन से मुझे पुकारेगा, मैं उसके हर दुःख में उसका संबल बनूँगा।” इसी अद्भुत प्रकट स्थल पर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई जो बारह ज्योतिर्लिंगों में अंतिम है।

आज भी यह धाम महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के पास स्थित है और श्रद्धालुओं को यह स्मरण कराता है कि भक्ति केवल मंत्रों या विधियों से नहीं, बल्कि सच्चे हृदय की भावना से होती है। यह स्थल शिव की कृपा और भक्ति की पराकाष्ठा का प्रतीक है।

कथा का भावार्थ – When Faith Redefined Devotion

Grishneshwar Jyotirlinga Katha केवल चमत्कार की कथा नहीं है, यह उस माँ की कहानी है जिसने अपार दुःख में भी भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा। यह कथा यह नहीं कहती कि जीवन में कठिनाइयाँ नहीं आएँगी, यह सिखाती है कि जब जीवन कठिन हो जाए, तब भी ईश्वर की शरण नहीं छोड़नी चाहिए।
घृष्मा ने अपने पुत्र की मृत देह को देखा, फिर भी पूजा नहीं रोकी। उसने अपने आँसुओं को रोष नहीं, समर्पण का रूप दिया। उसका प्रत्येक आँसू रुद्राभिषेक का जल बन गया।

आज जब लोग छोटी-छोटी बातों में ईश्वर से रूठ जाते हैं, घृष्मा की भक्ति हमें दर्पण दिखाती है, जब संसार का सब कुछ छूट जाए, तब भी प्रभु का नाम न छूटे।

भक्तिपूर्ण समर्पण

हे घृष्मा, तू ना तो किसी वेद की ज्ञाता थी, ना किसी मठ की साध्वी। तू एक माँ थी, लेकिन तेरे मौन और आंसुओं में वो सामर्थ्य था जिसने स्वयं शिव को प्रकट होने के लिए विवश कर दिया। तेरा तप, तेरा त्याग और तेरा प्रेम आज भी Grishneshwar Jyotirlinga की ऊर्जा में समाया हुआ है। तेरे आँसू इस धाम की दीवारों में नहीं, बल्कि भक्तों के हृदय में गूंजते हैं। तेरा नाम हर उस स्त्री की शक्ति है जो बिना बोले, ईश्वर से संवाद कर रही है।


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