“Maruti Stotra” एक अत्यंत प्रभावशाली मराठी स्तोत्र है जो भगवान हनुमान के प्रचंड, रौद्र और रक्षक रूप का गान करता है। इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से शत्रु नाश, भूत-प्रेत बाधा, रोग मुक्ति, मानसिक भय, तनाव, तथा संकटकालीन समय में किया जाता है।
इस स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक में हनुमान जी की ऐसी शक्ति का वर्णन है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड को कम्पित कर दे। वह वज्र से भी कठोर, अग्नि से भी प्रज्वलित, और सुर्य मंडल को निगलने में सक्षम हैं। उनके दर्शन और स्मरण मात्र से दुख, दरिद्रता, रोग और शत्रु भय समाप्त हो जाते हैं। यह स्तोत्र न केवल भक्त को शारीरिक रक्षा, बल्कि आध्यात्मिक बल और मानसिक निर्भयता प्रदान करता है। हे भीमरूपी, प्रचंड रूपधारी, महाक्रोधी रूद्रस्वरूप हनुमान! आप वज्र समान शक्तिशाली हैं, अंजनी पुत्र हैं, राम के दूत हैं, संसार के विनाशक हैं।
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Maruti Stotra in Hindi Meaning – अर्थ
भीमरूपी महारुद्रा, वज्र हनुमान मारुती।
वनारी अंजनीसूता, रामदूता प्रभंजना ॥
महाबळी प्राणदाता, सकळां उठवीं बळें ।
सौख्यकारी शोकहर्ता, धूर्त वैष्णव गायका ॥
आप महान बलशाली हैं, प्राणों की रक्षा करने वाले हैं। आप संपूर्ण जगत को अपनी शक्ति से उठाने वाले हैं, सुख देने वाले और शोकों को हरने वाले हैं। आप दुष्टों के नाशक और विष्णुभक्तों की वाणी में गूंजने वाले हैं।
दिनानाथा हरीरूपा, सुंदरा जगदंतरा।
पाताळ देवता हंता, भव्य सिंदूर लेपना ॥
हे दिन के स्वामी! आप विष्णु रूप हैं, संसार के भीतर रहने वाले सुंदरतम हैं। आप पाताल के दैत्यों का संहार करने वाले हैं, आपके शरीर पर भव्य सिंदूर लगा हुआ है।
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लोकनाथा जगन्नाथा, प्राणनाथा पुरातना ।
पुण्यवंता पुण्यशीला, पावना परतोषका ॥
आप लोकों के स्वामी, जगत के नाथ, प्राणों के भी प्रियतम हैं। आप पुण्यात्मा हैं, पवित्र स्वभाव वाले हैं, पवित्रता के स्रोत और संतोष प्रदान करने वाले हैं।
ध्वजांगे उचली बाहू, आवेशें लोटिला पुढें ।
काळाग्नी काळरुद्राग्नी, देखतां कांपती भयें ॥
युद्ध में आप ध्वज उठाते हैं, भुजाएं फैलाते हैं और आवेश में लुढ़ककर आगे बढ़ते हैं। आपका रूप कालाग्नि और रौद्र अग्नि के समान है, जिसे देखकर शत्रु भय से कांपते हैं।
ब्रह्मांड माईला नेणों, आवळें दंतपंगती।
नेत्राग्नी चालिल्या ज्वाळा, भृकुटी त्राहिटिल्या बळें ॥
आपके मुख में समस्त ब्रह्मांड समा सकता है, आपके दांत विकराल हैं। आपकी आँखों से अग्नि निकलती है, आपकी भौंहों की शक्ति से समस्त ब्रह्मांड कांपता है।
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पुच्छ तें मुरडिलें माथां, किरीटी कुंडलें बरीं।
सुवर्णकटीकासोटी, घंटा किंकिणी नागरा ॥
आपकी पूंछ ऊपर सिर पर मुड़ी हुई है, आप मुकुट और सुंदर कुंडलों से सुशोभित हैं। आपकी कमर में स्वर्ण पेटी, घंटियां, किंकिणियाँ और नागराज की शोभा है।
ठकारे पर्वताऐसा, नेटका सडपातळू।
चपळांग पाहतां मोठें, महाविद्युल्लतेपरी ॥
आपका शरीर पर्वत जैसा विशाल है, फिर भी सुगठित और बलवान है। आपकी चाल बिजली जैसी तेज है और आपकी अंगों की गति बिजली की लहर जैसी है।
कोटिच्या कोटि उड्डाणें, झेपावे उत्तरेकडे ।
मंद्राद्रीसारिखा द्रोणू, क्रोधे उत्पाटिला बळें ॥
आप करोड़ों में से करोड़ उड़ानों में भी सर्वोपरि हैं। आपने क्रोध में द्रोण पर्वत को उखाड़ लिया, मानो वह मंद्राचल हो।
आणिता मागुता नेला, गेला आला मनोगती ।
मनासी टाकिलें मागें, गतीस तूळणा नसे ॥
आपने इच्छानुसार लंका से संजीवनी पर्वत लाया। आपने अपने मन को पीछे छोड़ा और गति ऐसी थी जिसकी तुलना नहीं हो सकती।
अणूपासोनि ब्रह्मांडा, येवढा होत जातसे।
तयासी तुळणा कोठें, मेरुमंदार धाकुटें ॥
आप अणु से ब्रह्मांड तक सभी रूपों में स्वयं को बड़ा कर सकते हैं। आपकी तुलना में मेरु और मंदराचल भी छोटे हैं।
ब्रह्मांडाभोंवते वेढे, वज्रपुच्छ घालूं शके।
तयासि तूळणा कैचीं, ब्रह्मांडीं पाहतां नसे ॥
आप अपनी वज्रनुमा पूंछ से सम्पूर्ण ब्रह्मांड को घेर सकते हैं। आपकी तुलना ब्रह्मांड के किसी भी रूप से नहीं की जा सकती।
आरक्त देखिलें डोळां, गिळीलें सूर्यमंडळा ।
वाढतां वाढतां वाढे, भेदिलें शून्यमंडळा ॥
आपकी आँखें क्रोध से रक्तवर्ण हो गईं, आपने सूर्यमंडल को भी निगल लिया। आप इतने बढ़े कि अंत में शून्य को भी चीर दिया।
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धनधान्यपशुवृद्धी, पुत्रपौत्र समग्रही ।
पावती रूपविद्यादी, स्तोत्र पाठें करूनियां ॥
इस स्तोत्र का पाठ करने से धन, अन्न, पशु, संतान, ज्ञान आदि की वृद्धि होती है। यह स्तोत्र संपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति करता है।
भूतप्रेतसमंधादी, रोगव्याधी समस्तही ।
नासती तूटती चिंता, आनंदें भीमदर्शनें ॥
भूत-प्रेत, जादू-टोना, रोग-व्याधि सभी समाप्त हो जाते हैं। हनुमान जी के दर्शन मात्र से चिंता मिटती है और आनंद की प्राप्ति होती है।
हे धरा पंधराश्लोकी, लाभली शोभली बरी।
दृढदेहो निसंदेहो, संख्या चंद्रकळागुणें ॥
यह पंद्रह श्लोकों का स्तोत्र अत्यंत लाभकारी, शोभापूर्ण और प्रभावशाली है। इसका पाठ करने वाला व्यक्ति निःसंदेह दृढ़ शरीर और सिद्धियों को प्राप्त करता है।
रामदासी अग्रगण्यू, कपिकुळासी मंडण।
रामरूपी अंतरात्मा, दर्शनें दोष नासती ॥
आप रामदासों में अग्रगण्य हैं, वानर वंश के आभूषण हैं। आप के भीतर श्रीराम का रूप है, आपके दर्शन से सभी दोष मिट जाते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
Maruti Stotra एक ऐसा दिव्य रचना है जो शक्ति, भक्ति और निर्भयता का संगम है। इसका नियमित पाठ व्यक्ति को भीतर से मजबूत बनाता है शारीरिक रोगों से लड़ने की ताकत देता है, मानसिक अवसाद से उबारता है, और अदृश्य दुष्प्रभावों से रक्षा करता है।
हनुमान जी का यह स्तोत्र उनकी विराटता, गति, बल, चातुर्य और शरणागत वत्सलता को समर्पित है। जो भी इसे श्रद्धा और विश्वास से पढ़ता है, वह न केवल बाहरी बाधाओं से बचता है, बल्कि भीतर से भी अजेय बनता है। यदि जीवन में कोई संकट है, कोई भय है, कोई अवरोध है तो यह स्तोत्र रामभक्त हनुमान के स्वरूप को अपने जीवन में उतारने का सबसे सशक्त माध्यम है।
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