Maruti Stotra | समर्थ रामदास जी का संकटमोचन स्तोत्र | Pauranik Katha

भारतीय संत परंपरा में समर्थ रामदास स्वामी का स्थान अत्यंत गौरवपूर्ण है। श्रीराम के अनन्य भक्त और वीरता के आदर्श मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज के आध्यात्मिक मार्गदर्शक समर्थ रामदास जी ने न केवल संतत्व की ऊंचाइयों को छुआ, बल्कि जनमानस को भी भक्ति, विवेक और राष्ट्रभक्ति की राह पर चलाया।

उनकी एक अत्यंत प्रसिद्ध काव्य-रचना है Maruti Stotra, जिसे उन्होंने संकटों से घिरे समाज के लिए रचा था। यह स्तोत्र केवल शब्दों का संकलन नहीं है, बल्कि उस समय के सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक संकटों में एक आध्यात्मिक शस्त्र के रूप में उभरा। इस लेख में हम जानेंगे कि Maruti Stotra की उत्पत्ति कैसे हुई, उसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है, और कैसे यह स्तोत्र युगों से साधकों को बल, बुद्धि और विजय प्रदान करता रहा है।

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समर्थ रामदास जी का जीवन परिचय और भक्ति मार्ग

समर्थ रामदास स्वामी का जन्म महाराष्ट्र के जांब गांव में हुआ था। उनका मूल नाम नारायण था। वे बचपन से ही अत्यंत बुद्धिमान, संयमी और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। उनके हृदय में श्रीराम और हनुमान जी के प्रति अगाध श्रद्धा थी।

कई वर्षों तक कठोर तपस्या के पश्चात उन्होंने स्वयं को “रामदास” नाम से पुकारा, जिसका अर्थ है राम का दास। उन्होंने हनुमान जी को अपने इष्ट देव के रूप में आराध्य किया और उन्हें “मारुति” कहकर पुकारते थे।

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Maruti- हनुमान जी का वीरता भरा रूप

हनुमान जी को कई नामों से जाना जाता है अंजनीपुत्र, पवनसुत, बजरंगबली, संकटमोचन आदि। “मारुति” नाम विशेष रूप से उनकी वायुतत्त्व से जुड़ी गति, शक्ति और चंचलता को दर्शाता है। यह नाम समर्थ रामदास को बहुत प्रिय था क्योंकि वे हनुमान जी को एक योद्धा, संरक्षक और स्फूर्तिदाता के रूप में पूजते थे।

उनकी मान्यता थी कि जब समाज में अन्याय, भय और अधर्म बढ़ जाए, तब केवल भक्ति और बल का संगम ही समाज की रक्षा कर सकता है और हनुमान जी उसका सजीव उदाहरण हैं।

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Maruti Stotra की प्रेरणा: भारत का सामाजिक–राजनीतिक परिदृश्य

समर्थ रामदास जी का समय भारत के इतिहास का अत्यंत कठिन दौर था। देश पर मुगल सत्ता का अत्याचार था, हिंदू संस्कृति संकट में थी, मंदिर तोड़े जा रहे थे, महिलाओं की अस्मिता और धर्म का अपमान हो रहा था। चारों ओर भय, पराजय और निराशा का वातावरण था। ऐसे में रामदास जी ने न केवल आध्यात्मिक चेतना जगाई, बल्कि शारीरिक और मानसिक शक्ति के लिए हनुमान जी को आदर्श बनाकर लोगों को जाग्रत किया।

उन्होंने पूरे महाराष्ट्र में “मारुति मंदिरों” की स्थापना की और लोगों को बौद्धिक, आत्मिक और शारीरिक बल प्रदान करने हेतु प्रेरित किया। इन्हीं प्रयासों के क्रम में उन्होंने Maruti Stotra की रचना की।

Maruti Stotra की रचना की पौराणिक कथा

कहते हैं कि एक बार समर्थ रामदास स्वामी महाराष्ट्र के किसी गांव में ठहरे हुए थे। गांव में भय का वातावरण था डाकुओं का आतंक, बीमारी, और धार्मिक संकट। लोग निराश थे। किसी को भरोसा नहीं था कि जीवन में अच्छा कुछ हो सकता है। उन्हें देखकर एक वृद्ध ग्रामीण बोला, “स्वामी जी, क्या ईश्वर केवल मंदिरों में है? हमारे संकटों का कोई समाधान नहीं?” यह सुनकर रामदास जी मौन हो गए। अगले दिन प्रातःकाल, उन्होंने गांव के बाहर एक छोटे टीले पर बैठकर ध्यान में लीन होकर हनुमान जी का आह्वान किया।

उन्हें ध्यान में एक दिव्य दर्शन हुआ हनुमान जी प्रकट हुए। उनका शरीर प्रकाशमान था, आंखों में ज्वाला, भुजाएं गदा से युक्त, और मुख पर अद्भुत तेज था। उस क्षण समर्थ रामदास जी के अंतःकरण से Maruti Stotra के प्रथम श्लोक की अनुभूति हुई: “मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्…”

और इसी अनुभूति में उन्होंने 11 मंत्रों की उस स्तोत्र रचना को पूर्ण किया, जो आज भी लाखों लोगों के जीवन में शक्ति, विश्वास और विजय का मंत्र बन चुका है।

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संपूर्ण स्तोत्र के श्लोकों की रचना में छिपी शक्ति

प्रत्येक श्लोक में हनुमान जी के एक-एक गुण को वर्णित किया गया है:

  • गति और वेग
  • इंद्रियों का नियंत्रण
  • बुद्धि की तीव्रता
  • शत्रुओं पर विजय
  • धर्म की रक्षा
  • श्रीरामभक्ति की चरम अवस्था

समर्थ रामदास जी ने ये श्लोक केवल कविता या भक्ति के रूप में नहीं लिखे, बल्कि उन्हें मानव ऊर्जा के जागरण का साधन बनाया। यह स्तोत्र एक प्रकार से आत्मसिद्धि की साधना बन गया।

छत्रपति शिवाजी और Maruti Stotra का रहस्य

इतिहास के अनुसार, जब छत्रपति शिवाजी महाराज ने रामदास जी से जीवन-दर्शन और मार्गदर्शन माँगा, तब उन्हें Maruti Stotra का पाठ करने का आदेश मिला। कहा जाता है कि शिवाजी महाराज अपने प्रत्येक युद्ध से पूर्व इस स्तोत्र का पाठ करते थे। उनके सेनापति, सैनिक और अधिकारी इसे नियमित रूप से पढ़ते थे। इसका उद्देश्य था – अंदर से निर्भय और बाहर से अजेय बनना।

शिवाजी महाराज के जीवन में यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक ढाल था, बल्कि एक मानसिक और राजनीतिक शस्त्र भी।

Maruti Stotra और जन-जन की आस्था

समर्थ रामदास जी ने केवल एक-दो गांव में नहीं, बल्कि संपूर्ण महाराष्ट्र में और आगे भी अनेक स्थानों पर मारुति मंदिरों की स्थापना की। इन मंदिरों के समक्ष, वे लोगों को Maruti Stotra का पाठ करने के लिए प्रेरित करते थे। प्रत्येक गांव में एक युवाशक्ति को तैयार किया जाता, जिसे “मारुति वीर” कहा जाता। वे स्वयं भी इसे दिन में अनेक बार पढ़ते और दूसरों को सिखाते।

उनकी विचारधारा थी: “जहाँ यह स्तोत्र पढ़ा जाएगा, वहाँ भय टिक नहीं सकेगा।” इस तरह Maruti Stotra एक आंदोलन बन गया,

  • भक्ति का
  • जागरण का
  • स्वाभिमान का
  • और धर्म की रक्षा का

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कालजयी प्रभाव और आज की प्रासंगिकता

Maruti Stotra की यह पौराणिक उत्पत्ति और उसके पीछे की आध्यात्मिक शक्ति आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उस युग में थी। आज जब व्यक्ति तनाव, भय, असुरक्षा और मानसिक द्वंद्व से गुजरता है, तब Maruti Stotra उसकी आत्मा को स्थिर करता है, साहस देता है और भय को हरता है।

भले ही तकनीक बदल गई हो, जीवन की चुनौतियाँ आज भी उतनी ही विकराल हैं। Maruti Stotra आज भी एक साधक के लिए वही संकटमोचक कवच है जैसा उस काल में था।

निष्कर्ष (Conclusion)

Maruti Stotra केवल एक धार्मिक पाठ नहीं है, यह संघर्ष और समाधान का प्रतीक है। इसकी पौराणिक उत्पत्ति केवल रामदास जी की भक्ति का प्रमाण नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति की नींव है।

जब उन्होंने इसे रचा, तो वह केवल श्लोक नहीं लिख रहे थे वे लोगों को अंधकार से प्रकाश की ओर, भय से निर्भयता की ओर, और पराजय से विजय की ओर ले जा रहे थे। आज भी जब कोई इसे श्रद्धा से पढ़ता है, तो वह केवल स्तोत्र नहीं गा रहा होता वह हनुमान जी को साक्षात आमंत्रित कर रहा होता है।

इसलिए, Maruti Stotra की पौराणिक कथा न केवल सुनने योग्य है, बल्कि उसे जीवन में उतारने योग्य भी है


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