रक्षाबंधन का इतिहास: कैसे शुरू हुई राखी बांधने की परंपरा ?

(History of Raksha Bandhan: How the Tradition of Tying Rakhi Sister)

भूमिका (Introduction)

भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर पर्व केवल एक दिन का आयोजन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अनुभूति होती है। रक्षाबंधन इन्हीं उत्सवों में से एक है, जो हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह केवल भाई-बहन का रिश्ता ही नहीं, बल्कि एक व्रत, एक संकल्प, एक वचन का प्रतीक बन चुका है। जब बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है, तो वह केवल धागा नहीं होता, बल्कि उसके पीछे होती है – दुआएं, विश्वास, और एक अटूट बंधन।

लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि इस पर्व की शुरुआत कब और कैसे हुई? क्या यह केवल सामाजिक रस्म है या इसका कुछ पौराणिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक पक्ष भी है? इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे शुरू हुई राखी बांधने की परंपरा, किन पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक संदर्भों से यह जुड़ी है, और कैसे यह समय के साथ समाज में बदलते भावों के साथ और भी समृद्ध हुई।

यह भी पढ़े: Karwa Chauth Vrat | सुहाग की रक्षा का पर्व

Raksha Bandhan का शाब्दिक और वैदिक अर्थ

रक्षाबंधन दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘रक्षा’ और ‘बंधन’। इसका शाब्दिक अर्थ है रक्षा का बंधन, अर्थात् एक ऐसा बंधन जो सुरक्षा का वचन देता है। वैदिक काल में यह परंपरा केवल भाई-बहन तक सीमित नहीं थी। यज्ञ में ब्राह्मण यजमान को रक्षा-सूत्र बांधते थे ताकि वह नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित रहे। इस रक्षा-सूत्र को ‘मौली’ भी कहा जाता है।

ऋग्वेद और यजुर्वेद में भी रक्षा-सूत्र का उल्लेख है। यज्ञ के दौरान जब किसी को रक्षा-सूत्र बांधा जाता था, तो मंत्रों के साथ यह भावना भी जुड़ी होती थी कि वह व्यक्ति जीवन में विजय, स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त करे। धीरे-धीरे यह यज्ञीय परंपरा आम सामाजिक परंपरा में बदलती गई और रक्षाबंधन का रूप लेती गई।

प्राचीन कथाएं और पौराणिक इतिहास

इंद्राणी और इंद्र देव की कथा

देवताओं और असुरों के मध्य जब भयंकर युद्ध चल रहा था, तब इंद्र बार-बार असुरों से पराजित हो रहे थे। तब उनकी पत्नी इंद्राणी ने गुरु बृहस्पति से रक्षा का उपाय पूछा। उन्होंने एक विशेष रक्षा-सूत्र तैयार किया और मंत्रों के साथ इंद्र की कलाई पर बाँध दिया। उसी दिन से इंद्र को शक्ति मिली और उन्होंने युद्ध में विजय प्राप्त की। यह श्रावण पूर्णिमा का ही दिन था और इस प्रकार इस दिन ‘रक्षा-सूत्र’ बांधने की परंपरा शुरू हुई।

1 श्रीकृष्ण और द्रौपदी की कथा

महाभारत में एक प्रसंग आता है जब श्रीकृष्ण की उंगली कट जाती है और खून बहने लगता है। द्रौपदी तुरंत अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बाँध देती है। यह प्रेम और कर्तव्य का प्रतीक बन गया। इसके बदले में श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को जीवनभर सुरक्षा देने का वचन दिया और चीरहरण के समय वह वचन निभाया। यहीं से राखी केवल एक धागा नहीं, बल्कि एक संकल्प बन गया।

2 यम और यमुनाजी की कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, यमुनाजी ने यमराज को रक्षा-सूत्र बाँधा था। इससे प्रभावित होकर यमराज ने वचन दिया कि जो भी व्यक्ति इस दिन बहन द्वारा राखी बंधवाएगा, उसकी आयु दीर्घ होगी। तभी से रक्षाबंधन को दीर्घायु और कल्याण का पर्व माना जाता है।

3 राजा बलि और माता लक्ष्मी

वामन अवतार के समय भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि ली थी और फिर उसके साथ पाताल में रहने लगे। लक्ष्मीजी ने बलि को रक्षा सूत्र बाँधा और बदले में विष्णु को लौटाने का आग्रह किया। बलि ने वचन निभाया। इस कथा से राखी को दान और त्याग का भी प्रतीक माना गया।

यह भी पढ़े: Navratri Vrat 2025 | 9 दिन की पूजा विधि

इतिहास में रक्षाबंधन के प्रमाण

इतिहास में रक्षाबंधन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक महत्व भी रखता है।

रानी कर्णावती और हुमायूं

मेवाड़ की रानी कर्णावती ने जब बहादुर शाह के आक्रमण से राज्य की रक्षा के लिए कोई उपाय नहीं देखा, तो उसने मुग़ल सम्राट हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा की प्रार्थना की। हुमायूं ने राखी का मान रखते हुए तुरंत सेना लेकर कर्णावती की रक्षा की।

यह घटना दर्शाती है कि राखी केवल रक्त संबंधों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसने धर्म, जाति, राज्य और संस्कृति की सीमाओं को पार करते हुए मनुष्यता को जोड़ा।

रक्षा सूत्र और तंत्र-शक्ति का आध्यात्मिक पक्ष

रक्षा सूत्र को केवल पारंपरिक धागा मानना इसकी शक्ति को कमतर आंकना होगा। हिंदू तंत्र शास्त्र में इसे एक ऊर्जा संचरण का माध्यम माना गया है। इसे बाँधते समय जो मंत्र उच्चारित किए जाते हैं, वे व्यक्ति के चारों ओर एक रक्षा-कवच का निर्माण करते हैं।

रक्षा सूत्र को बांधने की दिशा, समय और विधि का विशेष महत्व होता है। इसे दाहिने हाथ की कलाई पर बांधा जाता है और बांधते समय “रक्षाबंधनमं शुभं…” मंत्र पढ़ा जाता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और शरीर, मन और आत्मा को सुरक्षित रखता है।

यह भी पढ़े: रक्षाबंधन 2025: बहन-भाई के अटूट प्रेम का पर्व – तिथि, महत्व और पूजा विधि

भारत के विभिन्न राज्यों में राखी के रूप और विविधता

भारत एक विशाल सांस्कृतिक माला है और हर राज्य में रक्षाबंधन की अभिव्यक्ति अलग है।

  • उत्तर भारत – पारंपरिक भाई-बहन का पर्व, मिठाई, तिलक और उपहार
  • महाराष्ट्र – नारळी पूर्णिमा; मछुआरे समुद्र की पूजा करते हैं
  • बंगाल – राखी को सामाजिक सौहार्द्र का प्रतीक मानते हैं, शांति के संदेश के रूप में
  • राजस्थान – राजपूत महिलाएं अपने वीर भाइयों को राजसी राखी भेजती हैं
  • सिख धर्म में – इसे “रखड़ी” कहा जाता है, गुरु और सिख परंपरा में इसकी अलग गरिमा है

आधुनिक युग में राखी की नई परिभाषाएं

समय बदला, भावनाएं बदलीं लेकिन राखी का मूल भाव नहीं बदला। आज जब भाई-बहन भौगोलिक दूरियों के कारण साथ नहीं होते, तो डिजिटल राखी भेजी जाती है। ऑनलाइन पोर्टल्स राखी और उपहार भेजने का माध्यम बन चुके हैं।

1 बीज राखी और इको-फ्रेंडली राखी

आजकल बीज वाली राखियाँ बनाई जाती हैं, जिन्हें जमीन में बोने से पौधे निकलते हैं। मिट्टी की राखियाँ पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए बनाई जाती हैं।

2 सैनिकों को राखी भेजना

कई बहनें हर साल उन सैनिकों को राखियाँ भेजती हैं, जो सीमा पर उनके लिए रक्षा कर रहे हैं। ये राखियाँ हमें याद दिलाती हैं कि देशभक्ति भी एक प्रकार का रक्षाबंधन है।

FAQs (सामान्य प्रश्न)

1. रक्षाबंधन की शुरुआत कब हुई थी?

उत्तर: वेदों के काल से रक्षा-सूत्र की परंपरा चली आ रही है, परंतु सामाजिक पर्व के रूप में यह महाभारत युग और इंद्राणी की कथा से जुड़ा हुआ है।

2. रक्षाबंधन का असली महत्व क्या है?

उत्तर: यह केवल भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक नहीं बल्कि रक्षा, प्रेम, विश्वास और आत्मीयता का पर्व है।

3. क्या राखी केवल भाई को ही बांधी जाती है?

उत्तर: नहीं, आजकल बहनें अपनी बहनों, गुरु, सैनिक, यहाँ तक कि प्रकृति को भी राखी बांधती हैं।

4. क्या रक्षा सूत्र और राखी अलग हैं?

उत्तर: हां, मूल रूप से रक्षा सूत्र वैदिक धागा होता है जो मंत्रों के साथ बांधा जाता है। राखी इसका आधुनिक रूप है।

5. 2025 में रक्षाबंधन कब है?

उत्तर: रक्षाबंधन 2025 में 9 अगस्त, शनिवार को मनाया जाएगा। उस दिन पूर्णिमा के विशेष मुहूर्त में राखी बांधी जाएगी।

निष्कर्ष

रक्षाबंधन केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। यह एक ऐसा पर्व है जो प्रेम को सहेजता है, विश्वास को मजबूत करता है, और आत्मीयता की रक्षा करता है। यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि रक्षा केवल शारीरिक नहीं होती, आत्मा की रक्षा भी उतनी ही आवश्यक है।

राखी एक ऐसा बंधन है, जो रिश्तों से परे जाकर मानवता और कर्तव्य को जोड़ता है। आइए इस बार रक्षाबंधन पर केवल धागा ही न बांधें, बल्कि एक वचन, एक संकल्प, एक संस्कार को भी साथ में बाँधें और यही है इस पर्व की असली भावना।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *