Rudrashtak Stotra भगवान शिव की महिमा में रचित एक अत्यंत प्रभावशाली और भक्तिपूर्ण स्तुति है, जिसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के उत्तरकांड में की थी। “रुद्र” का अर्थ है भगवान शिव का उग्र रूप, और “अष्टक” का अर्थ है आठ श्लोकों वाला स्तोत्र। इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी भय, बाधाएं और रोग दूर होते हैं, और शिवभक्त को आत्मिक शांति, शक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र सोमवार, महाशिवरात्रि, प्रदोष व्रत, और सावन माह में विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
यह पढ़े: Shiv Panchakshar Stotra – सम्पूर्ण पाठ हिंदी में
सम्पूर्ण पाठ ( Rudrashtak Stotra Full Path )
श्लोक 1
नमामीशमीशान-निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥
श्लोक 2
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥2॥
श्लोक 3
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्रीशरीरम्।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनीचारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥
यह पढ़े: Shiv Chalisa Full Path – शिव चालीसा सम्पूर्ण पाठ
श्लोक 4
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥4॥
श्लोक 5
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डमजं भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रयःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥
श्लोक 6
कलातीतकल्याणकल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्दसन्दोहमोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥
यह पढ़े: Hanuman Chalisa Full Path – हनुमान चालीसा सम्पूर्ण पाठ
श्लोक 7
न यावदुमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥7॥
श्लोक 8
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्।
जराजन्मदुःखौघतातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीशशम्भो ॥8॥
निष्कर्ष (Conclusion)
Rudrashtak Stotra केवल आठ श्लोक नहीं, बल्कि शिव तत्व से जुड़ने की एक आध्यात्मिक सीढ़ी है। इसका नियमित पाठ न केवल मानसिक शांति, आत्मिक ऊर्जा, और कर्म शुद्धि प्रदान करता है, बल्कि जीवन के सभी भय, दुःख और अज्ञान को हर लेता है। जो भी भक्त श्रद्धा और प्रेम से इस स्तोत्र का स्मरण करता है, वह महादेव शिव की कृपा का पात्र बनता है। हर सोमवार या शिवरात्रि पर इसका पाठ अवश्य करें और शिवत्व की अनुभूति पाएं।