Shani Chalisa Meaning in Hindi | 40 चौपाइयों का सरल और भावपूर्ण अर्थ

Shani Chalisa का शुद्ध अर्थ हिंदी में पढ़ें। जानिए हर चौपाई के पीछे छिपे भक्ति, शक्ति और सेवा भाव के सरल अर्थ और आध्यात्मिक संदेश।

Shani Chalisa, एक अत्यंत प्रभावशाली और भक्तिपूर्ण स्तोत्र है, जो न्याय के देवता शनि महाराज की स्तुति के लिए रचा गया है। इसे श्रद्धा और आस्था से पढ़ने पर शनि की दशा, साढ़ेसाती, ढैय्या जैसी ग्रह दोषों और जीवन की कठिन परिस्थितियों से राहत मिलने का मार्ग प्रशस्त होता है। यह चालीसा न केवल ग्रहों की शांति के लिए सहायक है, बल्कि यह जीवन में संयम, धैर्य और आत्मनियंत्रण की प्रेरणा भी देती है।

शनि देव को कर्मफल दाता माना गया है, और उनकी कृपा से मनुष्य अपने कर्मों का फल उचित रूप से प्राप्त करता है। शनि चालीसा का नियमित पाठ मन में सकारात्मक ऊर्जा भरता है और मनोबल को मजबूत करता है। इस लेख में हम शनि चालीसा की प्रत्येक चौपाई और दोहे का भाव सरल और स्पष्ट हिन्दी में प्रस्तुत कर रहे हैं, ताकि पाठक इसे केवल पढ़ें ही नहीं, बल्कि इसके गहरे आध्यात्मिक अर्थ को भी आत्मसात कर सकें।

यह प्रयास शनि देव की भक्ति को सरल भाषा में जन-जन तक पहुँचाने का एक विनम्र प्रयास है, जिससे हर व्यक्ति उनके दिव्य गुणों को समझ सके और उनके आशीर्वाद से जीवन को दिशा दे सके।

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Shani Chalisa Meaning in Hindi – शनि चालीसा हिन्दी भावार्थ

॥ दोहा ॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ॥
अर्थ: हे गणेश जी! आप शिव-पार्वती के पुत्र हैं, मंगलकर्ता हैं। कृपया दीन-दुखियों के कष्ट दूर करें और सबका कल्याण करें।

जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ॥
अर्थ: हे श्री शनिदेव! आपकी जय हो। मेरी विनती सुनिए। कृपया अपनी कृपा से मेरी रक्षा करें और मेरी मर्यादा बनाए रखें।

॥ चौपाई ॥

जयति जयति शनिदेव दयाला,
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
अर्थ: हे दयालु शनिदेव! आपकी जय हो। आप सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

चारि भुजा, तनु श्याम विराजै,
माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥
अर्थ: आपके चार भुजाएँ हैं, शरीर श्यामवर्ण है, सिर पर रत्नमुकुट शोभायमान है।

परम विशाल मनोहर भाला,
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
अर्थ: आपका विशाल और मनोहर मस्तक है। आपकी टेढ़ी दृष्टि और भृकुटि अत्यंत प्रभावशाली है।

कुण्डल श्रवण चमाचम चमके,
हिये माल मुक्तन मणि दमकै॥
अर्थ: आपके कानों में चमकते हुए कुण्डल हैं और हृदय पर मोतियों व रत्नों की माला शोभा दे रही है।

कर में गदा त्रिशूल कुठारा,
पल बिच करें अरिहिं संहारा॥
अर्थ: आपके हाथों में गदा, त्रिशूल और फरसा है, जिनसे आप शत्रुओं का तुरंत संहार कर देते हैं।

कृष्णो, छाया, नन्दन, यम,
कोणस्थ, रौद्र, दुःखभंजन॥
अर्थ: आप छाया के पुत्र हैं, यमराज के भाई हैं, कोणस्थ, रौद्र, और दुखों का नाश करने वाले हैं।

सौरीमन्द, शनी, दशनामा,
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
अर्थ: आपके दस नाम हैं – सौरी, मंद, शनि आदि। आप सूर्य के पुत्र हैं और सब कामनाओं की पूर्ति करने वाले हैं।

जापर प्रभु प्रसन्न हवें जाहीं,
रंकहुँ राव करें क्षण माहीं॥
अर्थ: जिस पर आप प्रसन्न होते हैं, उसे क्षणभर में रंक से राजा बना देते हैं।

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पर्वतहू तृण होइ निहारत,
तृणहू को पर्वत करि डारत॥
अर्थ: आप पर्वत को तिनका और तिनके को पर्वत बना सकते हैं – आपकी दृष्टि से ही सबका परिवर्तन होता है।

राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो,
कैके हुँ की मति हरि लीन्हयो॥
अर्थ: आपने श्रीराम को वनवास दिया और कैकेयी की बुद्धि को मोहित कर दिया।

बनहूँ में मृग कपट दिखाई,
मातु जानकी गई चुराई॥
अर्थ: बन में मृग के रूप में माया रचाई जिससे माता सीता का हरण हुआ।

लषणहिं शक्ति विकल करिडारा,
मचिगा दल में हाहाकारा॥
अर्थ: लक्ष्मण पर शक्ति लगने से वे मूर्छित हो गए, जिससे सेना में हाहाकार मच गया।

रावण की गति-मति बौराई,
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
अर्थ: रावण की गति और मति दोनों विचलित हो गईं और उसने श्रीराम से शत्रुता बढ़ा ली।

दियो कीट करि कंचन लंका,
बजि बजरंग बीर की डंका॥
अर्थ: सोने की लंका को कीट समान कर दिया और हनुमानजी के पराक्रम की ध्वनि चारों ओर गूँज उठी।

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा,
चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
अर्थ: राजा विक्रमादित्य पर आपकी वक्र दृष्टि पड़ी, जिससे वे चित्रमयूर के कारण पराजित हो गए।

हार नौलखा लाग्यो चोरी,
हाथ पैर डरवायो तोरी॥
अर्थ: नौलखा हार चोरी का आरोप लगा और विक्रम के हाथ-पाँव बाँध दिए गए।

भारी दशा निकृष्ट दिखायो,
तेलहिं घर कोल्हू चलवायो॥
अर्थ: उनकी दशा अत्यंत दयनीय हो गई और उन्हें तेल पेरने के कोल्हू में काम करना पड़ा।

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विनय राग दीपक माँ कीन्हयों,
तब प्रसन्न प्रभु है सुख दीन्हयों॥
अर्थ: राजा विक्रम ने विनयपूर्वक दीपक राग गाया जिससे प्रसन्न होकर आपने उन्हें सुख प्रदान किया।

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी,
आपहुं भरे डोम घर पानी॥
अर्थ: राजा हरिश्चंद्र को आपने ऐसी दशा में डाला कि उन्हें अपनी पत्नी को बेचना पड़ा और स्वयं डोम के घर पानी भरना पड़ा।

तैसे नल पर दशा सिरानी,
भंजी-मीन कूद गई पानी॥
अर्थ: राजा नल पर भी आपकी दशा आई। मछलियों ने उसकी अंगूठी चुराई और दशा भयानक हो गई।

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई,
पारवती को सती कराई॥
अर्थ: जब आपकी दृष्टि भगवान शंकर पर पड़ी, तो पार्वती को सती होना पड़ा।

तनिक विलोकत ही करि रीसा,
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
अर्थ: आपकी थोड़ी सी दृष्टि ने गणेश का मस्तक उड़ाकर आकाश में पहुँचा दिया।

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी,
बची द्रोपदी होति उघारी॥
अर्थ: जब पांडवों पर आपकी दशा आई, तो द्रौपदी की लाज संकट में आ गई, पर श्रीकृष्ण ने रक्षा की।

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कौरव के भी गति मति मारयो,
युद्ध महाभारत करि डारयो॥
अर्थ: आपने कौरवों की बुद्धि हर ली और महाभारत जैसा घोर युद्ध हुआ।

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला,
लेकर कूदि परयो पाताला॥
अर्थ: आपने सूर्य को मुख में रख लिया और पाताल में जाकर छिप गए।

शेष देव-लखि विनती लाई,
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
अर्थ: शेषनाग और अन्य देवताओं की विनती पर आपने सूर्य को मुक्त किया।

वाहन प्रभु के सात सुजाना,
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
अर्थ: आपके सात वाहन हैं – हाथी, गधा, मृग, कुत्ता आदि। ये सभी ज्योतिष में वर्णित हैं।

जम्बुक सिंह आदि नख धारी,
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
अर्थ: शेर, सियार आदि वाहनों के आने से जीवन में अलग-अलग फल होते हैं, ऐसा ज्योतिष शास्त्र कहता है।

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं,
हय ते सुख सम्पत्ति उपजावें॥
अर्थ: यदि शनि देव हाथी या घोड़े पर सवार हों तो लक्ष्मी प्राप्त होती है।

गर्दभ हानि करे बहु काजा,
सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
अर्थ: यदि शनि गधे पर आएँ तो हानि, और सिंह पर सवार हों तो राजसत्ता की प्राप्ति होती है।

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डार,
मृग दे कष्ट प्राण संहारे॥
अर्थ: सियार वाहन बुद्धि को नष्ट करता है और मृग वाहन जान को संकट में डालता है।

जब आवहिं प्रभु स्वान सवार,
चोरी आदि होय डर भारी॥
अर्थ: जब शनि देव कुत्ते पर सवार होते हैं तो चोरी, भय आदि का योग बनता है।

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तैसहि चारि चरण यह नामा,
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
अर्थ: आपके चरणों के चार भेद हैं – स्वर्ण, लोहा, चाँदी और ताम्र।

लौह चरण पर जब प्रभु आवैं,
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावें॥
अर्थ: जब शनि देव लौह चरण से आते हैं तो संपत्ति और संबंधों का नाश होता है।

समता ताम्र रजत शुभकारी,
स्वर्ण सर्व सर्वसुख मंगल भारी॥
अर्थ: ताम्र और रजत चरण शुभ हैं, जबकि स्वर्ण चरण अत्यंत शुभ और मंगलदायक है।

जो यह शनि चरित्र नित गावै,
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अर्थ: जो व्यक्ति इस चरित्र का नित्य पाठ करता है, उसे शनि की अशुभ दशा कष्ट नहीं देती।

अद्भुत नाथ दिखावें लीला,
करें शत्रु के नशि बलि ढीला॥
अर्थ: शनिदेव की लीला अद्भुत है, वे शत्रुओं को दुर्बल कर पराजित करते हैं।

जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई,
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
अर्थ: जो व्यक्ति योग्य पंडित से विधिवत शनि ग्रह शांति कराता है, उसे विशेष लाभ होता है।

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत,
दीप दान दै बहु सुख पावत॥
अर्थ: जो शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाता है और दीप दान करता है, वह सुख प्राप्त करता है।

कहत राम सुन्दर प्रभु दासा,
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
अर्थ: भक्त रामसुंदर कहते हैं कि शनिदेव का स्मरण करने से सुख और प्रकाश की अनुभूति होती है।

॥ अंतिम ॥

पाठ शनीश्चर देव को, कीहों ‘भक्त’ तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥
अर्थ: यह पाठ भक्त ने तैयार किया है। जो चालीस दिन तक इसका पाठ करता है, वह जीवन-सागर से पार हो जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

Shani Chalisa का अर्थ जानकर उसका भाव से पाठ करने से केवल शब्दों का उच्चारण नहीं, बल्कि आत्मा का समर्पण होता है। यह चालीसा भक्त को न केवल कष्टों से मुक्ति देती है, बल्कि जीवन में संयम, विवेक, धैर्य और शांति की स्थापना करती है। जो व्यक्ति नित्य इसका पाठ करता है, शनिदेव की कृपा सदैव उस पर बनी रहती है।

जय शनिदेव!


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