Shiv Krit Durga Stotra in Hindi | संपूर्ण पाठ और हर श्लोक का सरल भावार्थ

पढ़ें Shiv Krit Durga Stotra का संपूर्ण पाठ और हर श्लोक का भावार्थ। जानिए इस स्तोत्र की आध्यात्मिक महिमा और सरल हिंदी में अर्थ।

हिन्दू धर्म में शक्ति उपासना का विशेष स्थान है। जब स्वयं भगवान शिव किसी देवी स्तुति की रचना करते हैं, तो उसकी महिमा और प्रभाव अनंतगुणा बढ़ जाते हैं। “Shiv Krit Durga Stotra” एक ऐसा ही महान स्तोत्र है, जिसे भगवान शिव ने स्वयं माता दुर्गा की महिमा गाने के लिए रचा था। यह स्तोत्र न केवल माँ दुर्गा के विविध स्वरूपों का वर्णन करता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि वह संपूर्ण सृष्टि में कैसे व्याप्त हैं अग्नि में शक्ति, जल में शीतलता, आकाश में शब्द, और आत्मा में चैतन्य बनकर।

इस स्तोत्र का प्रत्येक श्लोक देवी के किसी विशेष स्वरूप या तत्व के साथ संबद्ध है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि शक्ति ही ब्रह्माण्ड की आधारशिला है। यह स्तोत्र एक अद्भुत साधना है ज्ञान, भक्ति और शक्ति का त्रिवेणी संगम।

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संपूर्ण पाठ अर्थ सहित (Shiv Krit Durga Stotra With Meaning)

रक्ष रक्ष महादेवि दुर्गे दुर्गतिनाशिनि ।
मां भक्तमनुरक्तं च शत्रुग्रस्तं कृपामयि ॥
हे महादेवी दुर्गा! आप सभी कष्टों और संकटों का नाश करने वाली हैं। कृपया मेरी रक्षा करें, क्योंकि मैं आपका सच्चा भक्त होकर आपके चरणों में अनुरक्त हूँ और शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ। हे कृपामयी माँ! मुझे अपने संरक्षण में लें।

विष्णुमाये महाभागे नारायणि सनातनि।
ब्रह्मस्वरूपे परमे नित्यानन्दस्वरूपिणि ॥
हे विष्णु की माया, हे अत्यंत पुण्यशालिनी नारायणी! आप सनातन हैं, आप ब्रह्मस्वरूपा हैं और सच्चिदानंद की परम मूर्ति हैं। आपकी उपासना से आत्मा को नित्य आनंद की प्राप्ति होती है।

त्वं च ब्रह्मादिदेवानामम्बिके जगदम्बिके ।
त्वं साकारे च गुणतो निराकारे च निर्गुणात् ॥
हे अम्बिके! आप ब्रह्मा आदि समस्त देवताओं की जननी हैं, आप ही जगदम्बा हैं। आप साकार रूप में त्रिगुणों से युक्त हैं और निराकार रूप में निर्गुण स्वरूपा हैं। आप ही सम्पूर्ण सृष्टि की आधारशक्ति हैं।

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मायया पुरुषस्त्वं च मायया प्रकृतिः स्वयम् ।
तयोः परं ब्रह्म परं त्वं विभर्षि सनातनि ॥
आप ही माया से पुरुष हैं और माया से ही प्रकृति भी हैं। आप इन दोनों के भी पार, परात्पर ब्रह्म हैं। आप सनातनी हैं और परातत्त्व की अधिष्ठात्री हैं।

वेदानां जननी त्वं च सावित्री च परात्परा ।
वैकुण्ठे च महालक्ष्मीः सर्वसम्पत्स्वरूपिणी ॥
आप वेदों की जननी हैं, आप ही सावित्री हैं और उनसे भी श्रेष्ठ परात्परा हैं। वैकुण्ठ में आप महालक्ष्मी के रूप में निवास करती हैं और समस्त ऐश्वर्य की स्वरूपा हैं।

मर्त्यलक्ष्मीश्च क्षीरोदे कामिनी शेषशायिनः ।
स्वर्गेषु स्वर्गलक्ष्मीस्त्वं राजलक्ष्मीश्च भूतले ॥
आप मृत्युलोक में लक्ष्मी के रूप में, क्षीरसागर में भगवान विष्णु की प्रिया हैं, स्वर्ग में स्वर्गलक्ष्मी और पृथ्वी पर राजलक्ष्मी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

नागादिलक्ष्मीः पाताले गृहेषु गृहदेवता ।
सर्वशस्यस्वरूपा त्वं सर्वैश्वर्यविधायिनी ॥
पाताल लोक में आप नागों की लक्ष्मी हैं, गृहस्थ जीवन में आप गृहदेवता हैं। आप अन्न, धन और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं। समस्त ऐश्वर्य का वरदान देने वाली भी आप ही हैं।

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रागाधिष्ठातृदेवी त्वं ब्रह्मणश्च सरस्वती ।
प्राणानामधिदेवी त्वं कृष्णस्य परमात्मनः ॥
आप राग और रस की देवी हैं, ब्रह्मा जी की शक्ति सरस्वती हैं और समस्त प्राणों की अधिष्ठात्री हैं। आप श्रीकृष्ण परमात्मा की दिव्य और शाश्वत शक्ति हैं।

गोलोके च स्वयं राधा श्रीकृष्णस्यैव वक्षसि ।
गोलोकाधिष्ठिता देवी वृन्दावनवने वने ॥
गोलोक में आप राधा स्वरूपा हैं और श्रीकृष्ण के वक्षस्थल में निवास करती हैं। आप वृंदावन के हर वन की अधिष्ठात्री देवी हैं।

श्रीरासमण्डले रम्या वृन्दावनविनोदिनी ।
शतशृङ्गाधिदेवी त्वं नाम्ना चित्रावलीति च ॥
आप रासमंडल में रमण करने वाली रम्या देवी हैं, वृंदावन की विनोदिनी हैं। शतशृंग तीर्थ की अधिष्ठात्री देवी के रूप में चित्रावली नाम से पूजित होती हैं।

दक्षकन्या कुत्र कल्पे कुत्र कल्पे च शैलजा ।
देवमातादितिस्त्वं च सर्वाधारा वसुन्धरा ॥
कभी आप दक्ष की पुत्री सती बनती हैं, तो किसी युग में हिमालय की कन्या पार्वती के रूप में। आप ही आदिति के रूप में देवताओं की माता हैं और सम्पूर्ण सृष्टि का आधार वसुंधरा हैं।

त्वमेव गङ्गा तुलसी त्वं च स्वाहा स्वधा सती ।
त्वदंशांशांशकलया सर्वदेवादियोषितः ॥
आप ही गंगा, तुलसी, स्वाहा, स्वधा और सती स्वरूपा हैं। आपकी अंशांश से ही सभी देवियों का प्राकट्य हुआ है।

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स्त्रीरूपं चापिपुरुषं देवि त्वं च नपुंसकम् ।
वृक्षाणां वृक्षरूपा त्वं सृष्टा चाङ्कररूपिणी ॥
आप स्त्री रूप में हैं, पुरुष रूप में भी और नपुंसक रूप में भी। आप वृक्षों में वृक्षस्वरूपा हैं और समस्त सृष्टि की निर्माणकारिणी शक्ति हैं।

वह्नौ च दाहिकाशक्तिर्जले शैत्यस्वरूपिणी ।
सूर्ये तेज: स्वरूपा च प्रभारूपा च संततम् ॥
आप अग्नि में दाह शक्ति हैं, जल में शीतलता की शक्ति हैं। सूर्य में तेजस्विनी और नित्य प्रकाश स्वरूपा हैं।

गन्धरूपा च भूमौ च आकाशे शब्दरूपिणी ।
शोभास्वरूपा चन्द्रे च पद्मसङ्गे च निश्चितम् ॥
आप भूमि में गंध स्वरूपा हैं, आकाश में ध्वनि स्वरूपा हैं, चंद्रमा में शोभा और कमल से संबंधित सौंदर्य की अधिष्ठात्री हैं।

सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा च पालने परिपालिका ।
महामारी च संहारे जले च जलरूपिणी ॥
आप सृष्टि में सृजनशक्ति हैं, पालन में पालिका हैं, विनाश में महामारी बनती हैं और जल में जलस्वरूपा हैं।

क्षुत्त्वं दया तवं निद्रा त्वं तृष्णा त्वं बुद्धिरूपिणी ।
तुष्टिस्त्वं चापि पुष्टिस्त्वं श्रद्धा त्वं च क्षमा स्वयम् ॥
आप ही क्षुधा, दया, निद्रा, प्यास, बुद्धि, संतोष, पोषण, श्रद्धा और क्षमा की सजीव मूर्ति हैं।

शान्तिस्त्वं च स्वयं भ्रान्तिः कान्तिस्त्वं कीर्तिरेवच ।
लज्जा त्वं च तथा माया भुक्ति मुक्तिस्वरूपिणी ॥
आप शांति हैं, भ्रम हैं, शोभा हैं, कीर्ति हैं, लज्जा हैं, माया हैं। आप भोग और मोक्ष दोनों की स्वरूपा हैं।

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सर्वशक्तिस्वरूपा त्वं सर्वसम्पत्प्रदायिनी ।
वेदेऽनिर्वचनीया त्वं त्वां न जानाति कश्चन ॥
आप समस्त शक्तियों की स्वरूपा हैं, समस्त सम्पत्तियों को देने वाली हैं। वेद भी आपको ठीक से नहीं बता पाते, कोई भी आपको पूर्णतया नहीं जान सकता।

सहस्रवक्त्रस्त्वां स्तोतुं न च शक्तः सुरेश्वरि ।
वेदा न शक्ताः को विद्वान न च शक्ता सरस्वती ॥
हे देवेश्वरी! सहस्र मुखों वाला भी आपकी स्तुति करने में अक्षम है। न वेद, न सरस्वती, न कोई ज्ञानी कोई भी आपकी संपूर्ण महिमा का वर्णन नहीं कर सकता।

स्वयं विधाता शक्तो न न च विष्णु सनातनः ।
किं स्तौमि पञ्चवक्त्रेण रणत्रस्तो महेश्वरि ॥
स्वयं ब्रह्मा और सनातन विष्णु भी आपकी स्तुति करने में समर्थ नहीं हैं। फिर मैं केवल पाँच मुखों वाला शिव युद्ध के भय से कांपते हुए आपकी महिमा कैसे गा सकता हूँ?

निष्कर्ष (Conclusion)

Shiv Krit Durga Stotra कोई सामान्य स्तुति नहीं, बल्कि परम ब्रह्म स्वरूपा देवी की विराटता का प्रमाण है। स्वयं महादेव द्वारा रचित यह स्तोत्र केवल आराधना का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मशक्ति की अनुभूति का सेतु है। इसमें देवी की स्त्री, पुरुष, प्रकृति, तत्व, चेतना, भाव और कृपा सभी स्वरूपों का समावेश है।

जो भी भक्त इस स्तोत्र को श्रद्धा और नियमपूर्वक पढ़ता या सुनता है, उसके जीवन से अज्ञान, भय, दुर्भाग्य और क्लेश दूर हो जाते हैं। यह स्तोत्र भक्त को देवियों की कृपा से जोड़कर उसे अध्यात्मिक प्रगति की ओर अग्रसर करता है। यदि आप देवी की सच्ची शरण में जाना चाहते हैं तो यह स्तोत्र आपकी आत्मा को जगा सकता है, कण-कण में शक्ति का अनुभव करा सकता है।


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