Somnath Jyotirlinga Katha: Top 5 Mystery जो जानकर आप चौंक जाएंगे!

प्रभास तीर्थ: जहाँ समुद्र शिवलिंग का अभिषेक करता है (Somnath Jyotirlinga Katha)

प्रभास तीर्थ, गुजरात की वह पावन भूमि है जहाँ भगवान शिव ने चंद्रदेव की करुण पुकार सुनकर स्वयं प्रकट होकर उन्हें श्राप से मुक्त किया था। यही वह दिव्य स्थल है जहाँ Somnath Jyotirlinga की स्थापना हुई जिसे द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रथम और सबसे पवित्र माना जाता है। यह स्थान न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य से भी परिपूर्ण है।

यहाँ हर दिन अरब सागर की लहरें शिवलिंग को स्वयं अभिषेक करती हैं जैसे प्रकृति भी अपनी भक्ति अर्पित कर रही हो। प्रभास तीर्थ पर खड़ा होकर जब भक्त समुद्र की गूंज, हवाओं की सरसराहट और शिव नाम का स्मरण करता है, तो ऐसा लगता है मानो सारा ब्रह्मांड एक साथ शिव की आराधना में लीन हो गया हो।

इस भूमि की कथा चिरंतन है एक ऐसी कथा जो श्रद्धालुओं के मन में विश्वास की ज्योति जलाती है। यही वह स्थान है जहाँ शिव को “सोमनाथ” के रूप में प्रतिष्ठा मिली और यह तीर्थस्थल युगों-युगों से लोगों की भक्ति, शक्ति और मुक्ति की खोज का केंद्र बना हुआ है। प्रभास तीर्थ वास्तव में आस्था की जीवंत धरती है।

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चंद्रमा का अभिमान और संतुलन का टूटना

चंद्रदेव को सृष्टि में शीतलता, सौंदर्य और आकर्षण का प्रतीक माना जाता है। उन्हें सोलह कलाओं से विभूषित किया गया था, जिससे उनका तेज और रूप अनुपम हो गया। उनकी चमक से प्रभावित होकर प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह उनसे कर दिया। ये कन्याएँ बाद में नक्षत्रों के रूप में जानी गईं।

हालाँकि, चंद्रदेव का विशेष स्नेह केवल रोहिणी पर केंद्रित रहा। उन्होंने अन्य कन्याओं की उपेक्षा करनी शुरू कर दी। यह असमान व्यवहार धीरे-धीरे एक बड़ा विवाद बन गया। अन्य कन्याओं की पीड़ा और असंतोष जब प्रजापति दक्ष तक पहुँचा, तो उन्होंने इसे अपनी प्रतिष्ठा का अपमान समझा। क्रोधित होकर उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि उनका तेज धीरे-धीरे क्षीण होता जाएगा और वे अंततः लुप्त हो जाएँगे।

इस श्राप के प्रभाव से चंद्रमा का तेज घटने लगा और वे संकट में पड़ गए। तब देवताओं और ऋषियों की प्रार्थना पर भगवान शिव प्रकट हुए और चंद्रदेव को अपनी जटाओं में स्थान दिया, जिससे उनका अस्तित्व बचा रहा और वे कलाओं सहित फिर से प्रकट हो सके।

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देवताओं की चिंता और ब्रह्मा की आज्ञा

चंद्रदेव को जब राजा दक्ष का शाप लगा, तो उनका तेज धीरे-धीरे क्षीण होने लगा। जो चंद्रमा कभी रात के आकाश में शीतलता और सौंदर्य का प्रतीक था, वह अब फीका और कांतिहीन हो गया। रात्रि में अंधकार बढ़ गया, ऋतुओं का संतुलन बिगड़ने लगा और सम्पूर्ण सृष्टि पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा। देवता इस स्थिति से अत्यंत चिंतित हो उठे। जब उन्हें कोई उपाय नहीं सूझा, तो वे ब्रह्मा जी की शरण में पहुँचे।

ब्रह्माजी ने स्थिति को समझते हुए स्पष्ट किया कि यह परिणाम चंद्रमा के अपने कर्मों का फल है और इस संकट से उन्हें स्वयं ही मुक्ति पानी होगी। किसी और की नहीं, केवल भगवान शिव की कृपा ही अब उन्हें इस शाप से मुक्त कर सकती है। ब्रह्माजी ने परामर्श दिया कि चंद्रमा को प्रभास क्षेत्र में जाकर भगवान शिव की तपस्या करनी चाहिए। यही वह क्षण था, जब चंद्रदेव ने शिव की घोर आराधना प्रारंभ की और शिव ने प्रसन्न होकर स्वयं प्रकट होकर उन्हें अभयदान दिया। यहीं से “सोमनाथ ज्योतिर्लिंग” की स्थापना का प्रारंभ होता है जहाँ शिव ने ‘सोम’ को नया जीवनदान दिया।

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तपस्या में लीन चंद्रदेव और शिव का आह्वान

चंद्रदेव, अपने पापों के प्रायश्चित हेतु पृथ्वी पर उतर आए और प्रभास क्षेत्र की शांत किनारों पर पहुँच गए। वहाँ उन्होंने एक पवित्र शिवलिंग के समक्ष गहन साधना प्रारंभ की। उन्होंने भोजन, जल और नींद तक का त्याग कर दिया, और स्वयं को केवल भगवान शिव के ध्यान और “ॐ नमः शिवाय” के जाप में समर्पित कर दिया।

दिन रात एकाकार हो गए, मौसम बदलते रहे, पर चंद्रदेव की साधना में कोई विचलन नहीं आया। समुद्र की लहरें उनके चरणों को छूकर उनकी भक्ति का साक्षात्कार करती रहीं। सूर्य की प्रखर किरणें शरीर को तपाती रहीं, परन्तु चंद्रदेव का मन स्थिर और अडिग रहा। उनका प्रत्येक श्वास अब भक्ति का स्वर बन चुका था।

इस अखंड तप और समर्पण ने अंततः महादेव को प्रसन्न कर दिया। प्रभु शिव उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें उनके श्राप से मुक्त करने का वरदान दिया। यही स्थान आगे चलकर सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध हुआ, जहाँ आज भी श्रद्धालु चंद्रदेव की भक्ति से प्रेरित होकर शिव की आराधना करते हैं।

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शिव का प्रकट होना और अमरत्व का वरदान

प्रभास क्षेत्र की तपोभूमि में, जब चंद्रदेव अपने कर्मों के प्रायश्चित हेतु गहन तपस्या में लीन हुए, तब उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए। यह वह क्षण था जब शिव ने न केवल अपने भक्त की पुकार सुनी, बल्कि उसे चिरकालिक शिक्षा भी प्रदान की। शिव ने कहा – “तुम्हारा तेज लौटेगा, किंतु यह नित्य न रहेगा। यह घटेगा और बढ़ेगा, जिससे मानव जीवन को समय, परिवर्तन और पुनरावृत्ति का बोध होगा।”

यही वह पावन क्षण था जब चंद्रमा के घटने-बढ़ने की प्रक्रिया की शुरुआत हुई। शिव ने इसे शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के रूप में व्याख्यायित किया, जिससे ब्रह्मांड में समय का संकल्पना स्पष्ट हुई। इस रहस्यमयी लीला ने Somnath Jyotirlinga katha को विशेष आध्यात्मिक महिमा प्रदान की। यहाँ केवल शिव की कृपा नहीं, बल्कि काल के रहस्य की भी गूढ़ व्याख्या छिपी है।

यह कथा आज भी इस बात का प्रतीक है कि जब भक्ति सच्ची हो, तो स्वयं शिव भी प्रकट होकर समय के चक्र में अमरत्व का संदेश दे जाते हैं।

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Somnath Jyotirlinga की स्थापना

प्राचीन काल में चंद्रदेव ने अपने गुरु दक्ष प्रजापति की कन्या को अपमानित किया था, जिसके कारण उन्हें श्राप मिला कि उनका तेज क्षीण हो जाएगा। जब समस्त दिशा से उनका तेज घटने लगा, तब वे महादेव की शरण में प्रभास तीर्थ पहुंचे और कठोर तपस्या करने लगे। भगवान शिव उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें श्राप से मुक्ति का वरदान दिया।

उसी क्षण भगवान शिव वहाँ ज्योति के रूप में प्रकट हुए और कहा, “हे सोम! मैं यहाँ सदैव ज्योतिर्लिंग रूप में निवास करूंगा। यह स्थान ‘सोमनाथ’ कहलाएगा – अर्थात् चंद्रदेव के नाथ।” भगवान शिव ने यह भी कहा कि जो भी भक्त इस भूमि पर श्रद्धा से उनका स्मरण करेगा, उसकी सारी पीड़ाएं दूर होंगी और उसे मानसिक शांति प्राप्त होगी।

चंद्रदेव ने अपनी कृतज्ञता प्रकट करने हेतु यहाँ स्वर्ण से एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। यह वही मंदिर है जो आगे चलकर ‘सोमनाथ मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ और आज यह भारत के सबसे पवित्र शिव धामों में से एक माना जाता है, जहाँ प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

चंद्रदेव ने इस स्थल पर स्वर्ण का भव्य मंदिर बनवाया, जो आगे चलकर सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

इतिहास में सोमनाथ का संघर्ष और पुनरुत्थान

Somnath Jyotirlinga Katha केवल पौराणिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक भी है। इस मंदिर को कई बार नष्ट किया गया। महमूद गजनवी ने 1025 ईस्वी में इस मंदिर पर आक्रमण किया और लूट लिया। इसके पश्चात् भी यह मंदिर कई बार विध्वंस का शिकार हुआ। मगर हर बार शिवभक्तों ने इसे पुनः खड़ा किया। स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल के संकल्प से इस मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ और यह आज अपने भव्य रूप में खड़ा है।

आज की श्रद्धा और पूजा की परंपरा

आज भी लाखों श्रद्धालु इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए आते हैं। यहां महामृत्युंजय जाप, रुद्राभिषेक, और विशेष सोमवारी पूजन बड़े भक्तिपूर्वक किए जाते हैं। मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से मानसिक अशांति, चंद्र दोष और आत्मिक विकार दूर होते हैं।
Somnath Jyotirlinga Katha आज भी प्रत्येक श्रद्धालु के जीवन में एक प्रेरणा बनकर जीवित है।

कथा का आध्यात्मिक सार

Somnath Jyotirlinga Katha केवल चंद्रदेव की नहीं है। यह हर उस जीव की कथा है, जिसमें कभी न कभी अभिमान आ जाता है, लेकिन जब वह पश्चाताप करता है और ईश्वर की शरण में आता है, तो उसे क्षमा और कृपा दोनों प्राप्त होती हैं।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कथा हमें यही सिखाती है, शिव केवल संहार नहीं करते, वे नवनिर्माण भी करते हैं।

निष्कर्ष

हे प्रभास के शिव, आपने चंद्रमा को नया जीवन दिया, उन्हें चक्र का प्रतीक बनाया। आपने अंधकार को जीवन के क्रम में बदला। जो आपसे विनम्र होकर प्रार्थना करता है, उसे आप कभी निराश नहीं करते। आपकी कृपा कालातीत है, और आपकी भक्ति अमर।

हर भक्त के जीवन में जब अंधकार बढ़ने लगे, तब आप जैसे चंद्रमा को बचा ले गए, वैसे ही हमें भी मार्ग दिखाएँ। हर बार जब हम भूलें करें, तो प्रभास की मिट्टी हमें याद दिलाए कि क्षमा पाने का मार्ग सिर्फ आपकी भक्ति है।

हर हर महादेव। जय सोमनाथ।


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