हिंदू धर्म में स्तोत्रों का पाठ न केवल आध्यात्मिक जागरण का माध्यम है, बल्कि आत्मा की गहराई में स्थित ऊर्जा को जागृत करने का भी शक्तिशाली उपाय माना गया है। विशेष रूप से वे स्तोत्र जो स्वयं भगवान शिव द्वारा रचे गए हों, उनकी महिमा और प्रभाव अत्यंत दिव्य माने जाते हैं। ऐसा ही एक स्तोत्र है “Shiv Krit Durga Stotra”, जिसे भगवान शिव ने माता दुर्गा की महानता और शक्तियों की स्तुति के रूप में रचा था। इस स्तोत्र का पाठ करते समय साधक न केवल माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करता है, बल्कि उसे शिवजी का आशीर्वाद भी मिलता है।
यह स्तोत्र साधक को विपत्तियों से बचाने, भय और संशय को दूर करने और आत्मबल प्रदान करने की क्षमता रखता है। इसमें निहित प्रत्येक श्लोक शक्ति, भक्ति और विश्वास का अद्भुत संगम है। यह केवल देवी की स्तुति नहीं, बल्कि एक भक्त की पूर्ण समर्पण भावना का प्रतीक है। जो भी श्रद्धापूर्वक इसका पाठ करता है, उसे मानसिक शांति, आध्यात्मिक बल और देवी की विशेष कृपा की अनुभूति अवश्य होती है। यह स्तोत्र भक्ति की एक अमूल्य निधि है।
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पौराणिक कथा (Mythological Story)
पुरातन काल में जब असुरों का अत्याचार चरम पर पहुंच गया था, तब तीनों लोकों में भय और अशांति व्याप्त हो गई। देवताओं ने इस संकट से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु और ब्रह्मा से सहायता मांगी। लेकिन दोनों ही देवताओं ने माता दुर्गा की आराधना का सुझाव दिया। अंततः सभी देवता हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में भगवान शिव के साथ एकत्र हुए और उन्होंने घोर तपस्या की।
भगवान शिव ने वहां एक दिव्य स्तोत्र की रचना की, जिसमें उन्होंने माता के विविध स्वरूपों की स्तुति की जैसे महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, चामुंडा और दुर्गा। शिवजी ने कहा कि इस स्तोत्र का पाठ जो भी व्यक्ति संकट के समय करेगा, उसकी रक्षा स्वयं देवी करेंगी।
जैसे ही यह स्तोत्र श्रद्धापूर्वक उच्चारित हुआ, देवी दुर्गा प्रकट हुईं और उन्होंने असुरों का संहार कर सम्पूर्ण सृष्टि को भय से मुक्त किया। तभी से यह स्तोत्र संकटों में रक्षा करने वाला और देवी कृपा प्राप्त करने का प्रभावशाली साधन माना जाता है।
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सम्पूर्ण पाठ (Shiv Krit Durga Stotra Path in Hindi)
रक्ष रक्ष महादेवि दुर्गे दुर्गतिनाशिनि ।
मां भक्तमनुरक्तं च शत्रुग्रस्तं कृपामयि ॥
विष्णुमाये महाभागे नारायणि सनातनि।
ब्रह्मस्वरूपे परमे नित्यानन्दस्वरूपिणि ॥
त्वं च ब्रह्मादिदेवानामम्बिके जगदम्बिके ।
त्वं साकारे च गुणतो निराकारे च निर्गुणात् ॥
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सम्पूर्ण पाठ अर्थ सहित (Shiv Krit Durga Stotra With Meaning)
रक्ष रक्ष महादेवि दुर्गे दुर्गतिनाशिनि ।
मां भक्तमनुरक्तं च शत्रुग्रस्तं कृपामयि ॥
अर्थ: हे महादेवी दुर्गा! हे सबकी दुर्गति को नाश करने वाली! आप मेरी रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए। मैं आपका भक्त आपके प्रेम में लीन हूँ और शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ आप कृपामयी हैं, मुझ पर करुणा कीजिए और मेरी रक्षा कीजिए।
विष्णुमाये महाभागे नारायणि सनातनि।
ब्रह्मस्वरूपे परमे नित्यानन्दस्वरूपिणि ॥
अर्थ: हे विष्णु की माया! हे अत्यंत भाग्यशालिनी देवी! हे नारायणी! आप सनातन (शाश्वत) हैं। आप ब्रह्म (संपूर्ण सृष्टि के मूल) की स्वरूपा हैं, परम स्वरूपा हैं। आप ही नित्य आनंद की मूर्तिमती स्वरूपिणी हैं।
त्वं च ब्रह्मादिदेवानामम्बिके जगदम्बिके ।
त्वं साकारे च गुणतो निराकारे च निर्गुणात् ॥
अर्थ: हे अम्बिका! हे जगदम्बा! आप ही ब्रह्मा आदि सभी देवताओं की भी जननी हैं। आप साकार रूप में गुणों से युक्त हैं, और निर्गुण रूप में निराकार भी हैं आप ही रूप और अरूप दोनों की एकमात्र शक्ति हैं।
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पूजा विधि (Shiv Krit Durga Stotra pooja-vidhi)
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- माँ दुर्गा की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाएं।
- लाल पुष्प, सिंदूर, चंदन और नैवेद्य अर्पित करें।
- शांत वातावरण में एकाग्र होकर स्तोत्र का 3, 5 या 11 बार पाठ करें।
- अंत में “ॐ नमो भगवति दुर्गायै” का जप करें।
विशेष काल:
- नवरात्रि
- अमावस्या व पूर्णिमा
- संकट काल में विशेष फलदायी होता है
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लाभ (Benefits)
- शत्रु भय व बाधा निवारण
- मानसिक शांति और शक्ति
- स्त्री रोगों से मुक्ति
- घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार
- देवी कृपा से विजय, ऐश्वर्य व रक्षा
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सावधानियां (Precautions)
- पाठ के समय पूर्ण श्रद्धा और नियम रखें
- मन में किसी प्रकार का अहंकार या संशय न हो
- पाठ करते समय मौन रहें या धीमे स्वर में बोलें
- स्तोत्र का अपमान या मज़ाक न करें
- मासिक धर्म के समय स्त्रियाँ पाठ न करें
Faq
1. शिव कृत दुर्गा स्तोत्र का मुख्य अर्थ क्या है
यह स्तोत्र भगवान शिव द्वारा देवी दुर्गा की महिमा का गुणगान करते हुए रचा गया था। इसका मुख्य उद्देश्य है माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की स्तुति करना और उनसे संकटों से रक्षा की प्रार्थना करना। यह स्तोत्र दर्शाता है कि माँ दुर्गा त्रैलोक्य की रक्षिका हैं और सभी देवता भी उनकी शरण में जाते हैं।
2. इस स्तोत्र के पाठ से कौन-कौन से लाभ प्राप्त होते हैं
मुख्य लाभ:
– मानसिक शांति और आत्मबल की प्राप्ति
– संकट और भय से रक्षा
– नकारात्मक ऊर्जा और तंत्र बाधाओं से मुक्ति
– शक्ति, साहस और आत्मविश्वास में वृद्धि
– माँ दुर्गा की कृपा से जीवन में शुभता और समृद्धि
3. पूजा विधि में इस स्तोत्र को कैसे शामिल किया जाए
शामिल करने की विधि:
– स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें
– माँ दुर्गा के सामने दीप जलाएं और फूल अर्पित करें
– शांत मन से इस स्तोत्र का पाठ करें, विशेष रूप से सुबह या संध्या के समय
– नवरात्रि या शुक्रवार के दिन इसका पाठ विशेष फलदायी माना जाता है
– पाठ के बाद “जय माता दी” या “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” मंत्र का जाप करें
4. क्या यह स्तोत्र नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से पढ़ना चाहिए
हाँ, नवरात्रि के नौ दिनों में इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत फलदायक होता है। यह देवी के सभी नौ रूपों की शक्ति को जागृत करता है और उपासक को संकटों से मुक्त करता है। भक्तजन नवरात्र के हर दिन इस स्तोत्र का पाठ करके विशेष आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
5. मैं अपने मन को शांत और शक्तिशाली बनाने के लिए इसे कब जपूं
आप इसे किसी भी शुभ दिन, विशेषकर सोमवार, शुक्रवार या नवरात्रि के प्रारंभ में शुरू कर सकते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
Shiv Krit Durga Stotra कोई साधारण स्तुति नहीं, बल्कि शिवजी की आत्मा से निकली वह शक्ति है, जो हर भक्त को मातृरूपा देवी के चरणों तक पहुंचाती है। इस स्तोत्र का हर श्लोक शक्ति, श्रद्धा और शरणागत भाव का प्रतिनिधित्व करता है।
आज के युग में जब भय, मानसिक तनाव और जीवन संघर्ष तीव्र हो गए हैं, यह स्तोत्र भक्त को आंतरिक शक्ति, रक्षा और आत्मिक बल प्रदान करता है। यदि आप सच्चे भाव से इस स्तोत्र का जप करें, तो माँ दुर्गा स्वयं आपके जीवन की राहें प्रशस्त करेंगी।
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